iGrain India - नई दिल्ली । इसे अप्रत्याशित तो नहीं लेकिन चिंताजनक अवश्य माना जाएगा कि अगस्त माह के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश में भारी गिरावट आ गई। ध्यान देने की बात है कि देश में जुलाई के बाद अगस्त को दूसरा सर्वाधिक वर्षा वाला महीना माना जाता है और इस माह की बारिश खरीफ फसलों के लिए 'टॉनिक' का काम करती हैं।
यह सही है कि अगस्त में कहीं-कहीं छिटपुट वर्षा हुई लेकिन कुल मिलाकर मानसून बहुत कमजोर रहा। केवल पूर्वी एवं पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर देश के अन्य भागों में मानसून की निष्क्रियता काफी हद तक बरकरार रही।
सबसे खराब हालत दक्षिण भारत में देखी गई जहां सामान्य औसत की केवल 38 प्रतिशत बारिश हुई। इससे खरीफ फसलों के साथ-साथ मसालों एवं अन्य बागानी फसलों को भी क्षति होने की आशंका बढ़ गई है।
अब सितम्बर के मानसून पर सबकी आस टिकी हुई है। मौसम विभाग ने सितम्बर में सामान्य वर्षा होने की संभावना व्यक्त की थी। कुछ विदेशी मौसम पूर्वानुमान केन्द्रों ने भी सितम्बर के प्रथम सप्ताह के दौरान खासकर दक्षिण भारत में अच्छी वर्षा का अनुमान लगाया है।
सिर्फ दक्षिण राज्यों गुजरात, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ जैसे प्रांतों में भी खरीफ फसलों को तत्काल भारी वर्षा की सख्त आवश्यकता है अन्यथा उसके सूखने का खतरा पैदा हो सकता है।
कृषि विशेषज्ञों को भय है कि यदि सितम्बर में पर्याप्त वर्षा नहीं हुई तो न केवल खरीफ फसलों को भारी नुकसान हो सकता है बल्कि आगामी रबी फसलों की अगैती बिजाई भी बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।
वर्षा पर आश्रित क्षेत्रों में मामला गंभीर होने की आशंका है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानसून पर अल नीनो मौसम-चक्र का असर और दबाव पड़ना शुरू हो गया है क्योंकि अगस्त में बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर में कोई बड़ा कम दाब का क्षेत्र अथवा डिप्रेशन सामने नहीं आया जो मानसून को सघन और गतिशील बना सकता था।
जैसे अल नीनो के कथित प्रभाव के बावजूद यह आवश्यक नहीं है कि मानसून कमजोर बना रहे और देश में वर्षा कम हो। अक्सर अल नीनो के समय में भी अच्छी वर्षा होती रही है इसलिए अभी उम्मीद बाकी है। खाद्य महंगाई बढ़ती जा रही है जिससे सरकार चिंतित है। घरेलू बाजार पर कमजोर मानसून का भी मनोवैज्ञानिक असर पड़ रहा है।