iGrain India - गुलबर्गा । मानसूनी वर्षा के भारी अभाव, ऊंचे तापमान एवं खेतों की मिटटी में नमी की भारी कमी के कारण उत्तरी कर्नाटक के कलबुर्गी (पुराना नाम गुलबर्गा) जिले तथा महाराष्ट्र के कुछ भागों में अरहर (तुवर) की फसल को भारी नुकसान होने से इसका उत्पादन काफी घटने की आशंका है।
मंडियों में साबुत तुवर एवं इसकी दली (प्रोसेस्ड) दाल की आपूर्ति घटने तथा मांग सामान्य रहने से कीमतों में तेजी मजबूती का माहौल बना हुआ है।
कर्नाटक में तुवर दाल का खुदरा बाजार भाव पहले ही बढ़कर 170-180 रुपए प्रति किलो पर पहुंच चुका है जबकि जल्दी ही यह 200 रुपए प्रति किलो की सीमा से आगे निकल सकता है।
फेडरेशन ऑफ कर्नाटक चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के वरिष्ठ उपाध्यक्ष का कहना है कि अब केवल अफ्रीका से तुवर के आयात पर उम्मीदें टिकी हुई हैं लेकिन अफ्रीकी देशों ने भी इसके निर्यात पर कुछ नियंत्रण लगाना शुरू कर दिया है जिससे वहां तुवर का भाव तेज होने लगा है।
भारत के लिए यह अच्छी खबर नहीं है क्योंकि आयात महंगा बैठने पर घरेलू प्रभाग में अरहर एवं इसकी दाल की कीमतों को नीचे आना बहुत मुश्किल होगा।
अफ्रीकी देशों से अब 800-900 डॉलर प्रति टन की दर से तुवर का आयात हो रहा है लेकिन फिर भी घरेलू प्रभाग में उत्पादित तुवर के मुकाबले आयातित माल का भाव कुछ नीचे है।
बंगलोर में आयातित तुवर से निर्मित दाल का थोक बाजार भाव 140 रुपए प्रति किलो के आसपास चल रहा है जबकि स्थानीय किस्मों की तुवर से निर्मित दाल का दाम 145 से 165 रुपए प्रति किलो के बीच बताया जा रहा है।
दलहन बाजार में तेजी पर नियंत्रण निकट भविष्य में लगाना कठिन है। दिसम्बर में जब तुवर की नई फसल की कटाई-तैयारी आरंभ होगी तभी इसके दाम में कुछ नरमी आने की उम्मीद की जा सकती है।
आमतौर पर दिसम्बर-जनवरी में कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं गुजरात जैसे राज्यों में तुवर के नए माल की अच्छी आवक होने लगती है। उद्योग समीक्षकों के अनुसार नए माल की जोरदार आपूर्ति शुरू होने से पूर्व तुवर दाल की कीमतों में करीब 20 प्रतिशत का और इजाफा हो सकता है।
एक विश्लेषक के अनुसार यद्यपि पिछले साल के मुकाबले इस बार कर्नाटक के कलबुर्गी से लेकर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा तक की पट्टी में तुवर की बिजाई कुल मिलाकर अच्छी हुई है लेकिन फसल को निकट भविष्य में यानी अगले 10-12 दिनों के दौरान अच्छी वर्षा की सख्त आवश्यकता है। यदि सूखे का वर्तमान माहौल बरकरार रहा तो फसल को काफी नुकसान हो सकता है।