iGrain India - रायपुर । पिछले एक साल के अंदर केन्द्र सरकार ने चावल के निर्यात को नियंत्रित करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं तथा आगे कुछ और निर्णय लिए जाने की आशंका बनी हुई है।
इससे चावल उद्योग में अनिश्चितता का माहौल बन गया है तथा मिलर्स, दलालों एवं निर्यातकों की चिंता बढ़ती जा रही है। क्योंकि सरकार की नीति से उसका कारोबार बंद होने का खतरा बढ़ गया है।
एक प्रमुख चावल उत्पादक एवं निर्यातक राज्य- छत्तीसगढ़ की राजधानी- रायपुर में स्थित चावल के एक अग्रणी दलाली प्रतिष्ठान मै० जैन कार्पोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित जैन ने इस गंभीर संकट से उद्योग को उबारने हेतु कुछ सुझावों के साथ इंडियन राइस एक्सपोर्ट से फेडरेशन (आईआरईएफ), दिल्ली के अध्यक्ष को एक पत्र भेजा है।
इसमें कहा गया है कि केन्द्र सरकार ने 8 सितम्बर 2022 को 100 प्रतिशत टूटे सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध तथा गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगाया था।
इसके बाद 20 जुलाई 2023 को सफेद (कच्चे) गैर बासमती चावल के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया और फिर 25 अगस्त 2023 को सेला गैर बासमती चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू कर दिया गया।
बासमती चावल के लिए भी 1200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य निर्धारित किया गया है। प्रतिबंधों और नियंत्रणों का सिलसिला आगे भी जारी रहने की संभावना है जिससे चावल उद्योग से जुड़े सभी सम्बद्ध पक्षों को नुकसान हो रहा है और आगे भी होता रहेगा।
हालात ऐसे दिख रहे हैं कि निकट भविष्य में सभी किस्मों एवं श्रेणियों के बासमती चावल के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लागू हो सकता है जबकि भारत वर्ष 2012-13 से ही इसका सबसे प्रमुख निर्यातक देश रहा है।
सत्र में आई आर ई एफ के अध्यक्ष को चावल का कारोबार सुचारु ढंग से चलने के लिए कुछ जरुरी कदम उठाने का सुझाव देते हुए कहा गया है कि चावल के सभी निर्यातकों, मिलर्स, ब्रोकर्स (दलालों), बैग कंपनियों एवं सीएचए की एक विशेष बैठक जल्दी से जल्दी आयोजित की जानी चाहिए ताकि सबके बीच परस्पर बेहतर तालमेल एवं सामंजस्य बनाया जा सके।
समूचे देश के सभी सीएचए को एक मच पर लाया जाना आवश्यक है क्योंकि सभी आईसीडी एवं बंदरगाहों के रीति रिवाज अलग-अलग हैं और सीएचए भी कस्टम का ही एक भाग है। उसका सहयोग मिलने से कई समस्याओं का समाधान हो सकता है।
चावल का व्यापार सिर्फ सर्वर कंपनियों के माध्यम से होता है और उसकी कार्यप्रणाली में कई असमानताएं होती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए उसका एक मंच पर आना जरुरी है। सभी सम्बद्ध सरकारी निकायों-एजेंसियों को भी एक मंच पर लाने का प्रयास होना चाहिए।