iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि केन्द्र सरकार ने घरेलू प्रभाग में आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने के तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से गेहूं एवं इसके उत्पादों तथा 100 प्रतिशत टूटे एवं सफेद (कच्चे) चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा हैं, सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगा दिया है।
बासमती चावल के लिए 1200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य लागू कर दिया है और तुवर तथा उड़द पर भंडारण सीमा लगा दी है लेकिन ये तमाम उपाय अपने उद्देश्य को हासिल करने में ज्यादा कारगर साबित नहीं हो रहे हैं।
सरकार द्वारा खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत रियायती मूल्य पर चावल तथा गेहूं की जा रही है और बफर स्टॉक से चना भी बेचा जा रहा है लेकिन फिर भी दाल-दलहन का बाजार ऊंचा एवं तेज बना हुआ है तथा गेहूं एवं चावल के दाम में भी नरमी नहीं आ रही है। थोक मंडियों में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति भी जटिल है।
इंडियन कौंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की एक रिपोर्ट में, कहा गया है कि खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदम सोची समझी रणनीति के बजाए जल्दी में किए गए प्रयास का हिस्सा प्रतीत होते हैं क्योंकि इससे कोई विशेष फायदा नहीं हो रहा है।
खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सुनियोजित व्यापार नीति लागू करने की आवश्यकता है जिसमें उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों- दोनों के हितों का ध्यान रहा जाए।
अगस्त 2023 में खुदरा महंगाई की दर 6.83 प्रतिशत दर्ज की गई जो इसकी उच्चतम मान्य सीमा 6 प्रतिशत से भी ऊंची है। चूंकि देश के खुदरा महंगाई आंकलन में खाद्य एवं पेय पदार्थों का भागीदारी 57 प्रतिशत रहती है और खाद्य महंगाई दर 9.94 प्रतिशत दर्ज की गई इसलिए खुदरा महंगाई पर इसका गहरा असर पड़ना स्वाभाविक ही है।