iGrain India - नई दिल्ली । पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ताओं के एक गठबंधन ने सर्वोच्च न्यायालय से जीएम सरसों पर स्थायी रूप से प्रतिबंध लगने का आग्रह करते हुए कहा है कि केन्द्र सरकार इस मामले में नियमों का उल्लंघन कर रही है।
इस मामले में हितों का टकराव हो रहा है, तथ्यों को तोड़-ंमरोड़कर प्रचारित किया जा रहा है और वास्तविकता को छिपाया जा रहा है। सरकार के बयान गैर वैज्ञानिक हैं और कई मुद्दों पर इसकी झूठी बातें भी सामने आ चुकी है। इस समूह का कहना है कि जीएम सरसों के बचाव में सरकार ने जो तथ्य जमा किए हैं वे भ्रामक एवं असत्य हैं।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के उस आदेश पर बयान जारी किया था जिसमें जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती की अनुमति दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट का स्टे आर्डर अभी जारी है और 26 सितम्बर को इस पर सुनवाई शुरू होने वाली है।
जीएम युक्त भारत गठबंधन ने कहा है कि केन्द्र एक ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट को दिग्भर्मित कर रहा है जो देश की खाद्य सुरक्षा एवं कृषक समुदाय की आजीविका से जुड़ा हुआ है।
गठबंधन द्वारा जारी एक बयान के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने पांच सदस्यों की एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति गठित की थी जिसमें दो सदस्य केन्द्र द्वारा नामित किए गए थे।
इस समिति ने भारत में हर्बोसाइड टॉलरेंट (एच टी) फसलों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार के अवैज्ञानिक बयानों एवं सरासर झूठ की हकीकत इस तथ्य से साबित होती है कि जीएम सरसों भी वास्तव में एक एचटी श्रेणी की फसल है और इसलिए इसकी खेती पर प्रतिबंध नहीं लगाने का कोई कारण नहीं बनता है।
25 अक्टूबर 2022 को भारत सरकार द्वारा जीएम सरसों के लिए स्वीकृति पत्र जारी किया था और अगर किसानों ने जीएम हाईब्रिड सरसों की खेती में ग्लू कोसिनेट का इस्तेमाल किया हो उसे अपराधी माना जा सकता है। सरकार किसानों को अपराध करने के लिए विवश करना चाहती है।
जीएम सरसों का मामला काफी दिनों से लम्बित है और उच्चतम न्यायालय में इस पर सुनवाई हो रही है। इस बीच प्रमुख उत्पादक राज्यों में सरकार ने जीएम सरसों के फील्ड ट्रायल की अनुमति देने से भी इंकार कर दिया है।