iGrain India - नई दिल्ली । अगस्त में काफी हद तक निष्क्रिय रहने के बाद दक्षिण-पश्चिम मानसून सितम्बर में दोबारा सक्रिय हो गया जिससे खासकर धान की रोपाई में काफी सहायता मिली और अंततः इसका उत्पादन क्षेत्र 400 लाख हेक्टेयर से ऊपर पहुंच गया।
लेकिन दलहन-तिलहन फसलों का रकबा गत वर्ष से पीछे रह गया। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र बढ़कर 1102 लाख हेक्टेयर से ऊपर पहुंच गया जो पिछले साल के बिजाई क्षेत्र में करीब 3 लाख हेक्टेयर तथा सामान्य औसत क्षेत्रफल से 7 लाख हेक्टेयर पर ज्यादा है।
पिछले साल की तुलना में इस बार धान, मोटे अनाज एवं गन्ना के उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई है जबकि दूसरी ओर दलहन, तिलहन एवं कपास का बिजाई क्षेत्र घट गया है।
जहां तक खरीफ सीजन के मुख्य खाद्यान्न- धान का सवाल है तो इसका कुल उत्पादक क्षेत्र गत वर्ष के मुकाबले करीब 11 लाख हेक्टेयर बढ़कर इस बार 411 लाख हेक्टेयर को पार कर गया है।
इसके तहत बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं कुछ अन्य राज्यों में धान के उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई है।
पूर्वी भारत में पिछले पांच दिनों से आसमान पर बदल छाए हुए हैं और रुक-रूककर बारिश हो रही है जिससे धान की फसल को भारी फायदा होने की उम्मीद है। लेकिन दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में धान रकबा घटा है और तेलंगाना में लगभग गत वर्ष के बराबर ही है।
उधर राष्ट्रीय स्तर पर दलहन फसलों का कुल क्षेत्रफल गत वर्ष के 128.49 लाख हेक्टेयर से 5.92 लाख हेक्टेयर घटकर इस बार 122.57 लाख हेक्टेयर रह गया जो समान्य औसत क्षेत्रफल से भी 12 प्रतिशत कम है।
कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना एवं तमिलनाडु जैसे राज्यों में दलहन फसलों के रकबे में कमी आई है। तुवर, उड़द एवं मूंग का क्षेत्रफल पीछे चल रहा है।
इसी तरह तिलहन फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र भी गत वर्ष के 196.08 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 192.91 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया। हालांकि सोयाबीन का बिजाई क्षेत्र 123.91 लाख हेक्टेयर से सुधरकर 125.13 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा मगर मूंगफली, सूरजमुखी, तिल एवं नाइजरसीड के क्षेत्रफल में गिरावट आ गई।
इसी तरह कपास का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के 127.57 लाख हेक्टेयर से घटकर 123.42 लाख हेक्टेयर रह गया मगर मोटे अनाजों का क्षेत्रफल 183.73 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 186.07 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया।