iGrain India - नई दिल्ली । घरेलू प्रभाग में दाल-दलहनों की मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है जिससे न केवल इसकी कीमतों में तेजी-मजबूती का माहौल बना हुआ है बल्कि विदेशों से इसके विशाल आयात की आवश्यकता भी पड़ रही है जिस पर भारी-भरकम बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है।
जनसंख्या एवं प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि के कारण अन्य खाद्य उत्पादों के साथ-साथ दाल-दलहन की खपत में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। दूसरी ओर दलहनों का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है और इसकी औसत उपज दर में खास बढ़ोत्तरी हो रही है।
मोटे अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक देश में दाल-दलहन की मांग एवं खपत बढ़कर 326.40 लाख टन पर पहुंच जाएगी जबकि पिछले तीन साल से इसका वार्षिक 270-275 लाख टन के आसपास स्थिर बना हुआ है। यदि घरेलू उत्पादन में अपेक्षित बढ़ोत्तरी नहीं हुई तो मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर बढ़कर 50 लाख टन तक पहुंच सकता है।
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय अपनी ओर से दलहनों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। कृषि विशेषज्ञों एवं अर्थ शास्त्रियों का कहना है कि दलहनों की खेती के प्रति किसानों का उत्साह एवं आकर्षण बढ़ाने के लिए उसे अपने उत्पाद के लाभप्रद मूल्य की गारंटी देनी होगी।
हालांकि फिलहाल सभी प्रमुख दलहनों का थोक मंडी भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ऊंचा चल रहा है मगर कई बार यह नीचे आ जाता है और तब सरकारी खरीद के अभाव में किसानों को औने-पौने दाम पर अपना माल बेचने के लिए विवश होना पड़ता है जिससे इसकी खेती में दिलचस्पी घट जाती है।
चालू सीजन के दौरान मौसम एवं मानसून की हालत अनुकूल नहीं होने से दलहनों का रकबा करीब 5 लाख हेक्टेयर घट गया। अगस्त के सूखे से भी दलहन फसलों को भारी क्षति होने की आशंका है।
देश में कनाडा, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया एवं अफ्रीकी देशों आदि से प्रति वर्ष 16 से 20 हजार करोड़ रुपए मूल्य के दलहनों का आयात किया जाता है और इसके सहारे ही घरेलू मांग एवं जरूरत को पूरा किया जाता है।
भारत खाद्यान्न और खासकर चावल तथा गेहूं के उत्पादन में वो आत्मनिर्भर हो चुका है मगर दलहन-तिलहन की पैदावार में काफी पीछे चल रहा है। केन्द्र सरकार ने अगले पांच साल में दलहनों का घरेलू उत्पादन बढ़ाकर 325.47 लाख टन पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
यह असंभव तो नहीं लेकिन काफी मुश्किल जरूर है। इस महत्वकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार दो स्तर पर प्रयास कर रही है। दलहनों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए ख़ाली (धरती) जमीन के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है और साथ ही साथ इसकी उपज दर बढ़ाने की भी कोशिश हो रही है। सरकार बिहार, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, आसाम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में दलहनों का क्षेत्रफल बढ़ाने का प्रयास कर रही है।