iGrain India - नई दिल्ली । भारत दुनिया में दाल-दलहनों का सबसे प्रमुख उत्पादक एवं खपतकर्ता देश है मगर घरेलू मांग एवं जरूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन नहीं होने के कारण इसे विदेशों से विशाल मात्रा में इसका आयात करना पड़ता है।
दलहनों के कुल वैश्विक उत्पादन में भारत का योगदान 25 प्रतिशत तथा कुल उपयोग में 28 प्रतिशत से कुल अधिक रहता है। इस अंतर को आयात के जरिए पूरा किया जाता है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान कुल 24.66 लाख टन दलहन का आयात हुआ था जो 2021-22 में 9.44 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 27 लाख टन पर पहुंच गया।
चालू वित्त वर्ष के शुरूआती चार महीनों में यानी अप्रैल-जुलाई 2023 के दौरान देश में दलहनों का आयात उछलकर 7.70 लाख टन पर पहुंच गया जो पिछले साल की समान अवधि के आयात 2.88 लाख टन से करीब ढाई गुणा अधिक था।
आगामी महीनों के दौरान भी इसमें बढ़ोत्तरी का सिलसिला जारी रहने की संभावना है क्योंकि खरीफ कालीन दलहन फसलों के उत्पादन का परिदृश्य अच्छा नहीं दिख रहा है।
कनाडा से मसूर का आयात बड़े पैमाने पर हो रहा था लेकिन बिगड़ते सम्बन्ध के कारण ऑस्ट्रेलिया से मसूर का आयात बढ़ाए जाने की संभावना है जहां नई फसल शीघ्र ही तैयार होने वाली है।
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार यद्यपि पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश में दलहनों की पैदावार में शानदार इजाफा हुआ है और इसका उत्पादन 2014-15 सीजन के 171.50 लाख टन से 62.5 प्रतिशत उछलकर 2022-23 के सीजन में 278.10 लाख टन के शीर्ष स्तर पर पहुंच गया लेकिन पिछले दो-तीन साल के दौरान इसमें सीमित बढ़ोत्तरी हुई। उदाहरणस्वरूप 2021-22 के सीजन में दलहनों का उत्पादन 273 लाख टन दर्ज किया गया था।
कृषि मंत्रालय अब दलहनों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने का प्रयास कर रहा है ताकि आगामी वर्षों में इसकी बढ़ने वाली घरेलू मांग को पूरा करने तथा आयात पर निर्भरता घटाने में सहायता मिल सके।
इसके तहत बिहार, बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखंड, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक सहित कुछ अन्य राज्यों में दलहनों का बिजाई क्षेत्र बढ़ाने की संभावना तलाशी जा रही है।
पूर्वी भारत में धान की कटाई होने के बाद विशाल भूभाग में खेत खाली रह जाते है। उसमें दलहन-तिलहन फसलों की खेती हो सकती है। वर्तमान समय में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक दलहनों के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं जबकि पूर्वी भारत में इसका उत्पादन काफी कम होता है। खरीफ सीजन में दलहन फसलों का बिजाई क्षेत्र घटने एवं मौसम अनुकूल नहीं होने से उत्पादन के प्रति चिंता बढ़ गई है।