iGrain India - नई दिल्ली । प्रशांत महासागर से उत्पन्न मौसम चक्र- अल नीनो का प्रभाव एवं प्रकोप घटता-बढ़ता रहता है। भारत में वह अगस्त में काफी सक्रिय हुआ जिससे मानसून की बारिश में भारी गिरावट आ गई। सितम्बर में यह नरम रहा और अक्टूबर में भी कम सक्रिय रहने की संभावना है।
लेकिन नवम्बर से इसकी तीव्रता एवं सक्रियता बढ़ सकती है वर्ष जनवरी तक यह शीर्ष स्तर पर पहुंच सकती है। आमतौर पर अल नीनो मौसम चक्र के दौरान वर्षा कम होती है और तापमान ऊंचा रहता है।
यदि नवम्बर-जनवरी की अवधि में ऐसी हालत रही तो रबी फसलों की बिजाई एवं प्रगति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। वैश्विक मौसम मॉडल्स से संकेत मिलता है कि मध्यवर्ती से लेकर पूर्वी प्रशांत महासागर तक समुद्र की सतह द्बारा गर्म होने लगी है।
अमरीकी मौसम पूर्वानुमान केन्द्र का कहना है की नवम्बर से जनवरी की पीक अवधि के दौरान अल नीनो कहीं सामान्य तो कहीं बहुत मजबूत या ताकतवर रह सकता है। महासागरीय संकेत स्पष्ट रूप से अल नीनो के आगमन को प्रदर्शित कर रहे हैं।
प्रशांत महासागर में समुद्री सतह का तापमान अल नीनो मौसम चक्र के निर्माण के लिए अनुकूल होता जा रहा है। आगामी दिनों में इसके और भी गर्म होने की संभावना है। वहां गर्मी जितनी बढ़ेगी, अल नीनो उतना ही प्रचंड होगा।
आम तौर पर अल नीनो मौसम चक्र के दौरान एशिया में लम्बे समय तक मौसम शुष्क एवं गर्म रहता है और सूखे का माहौल बन जाता है। यह भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून को भी प्रभावित करता है जो अब देश से प्रस्थान करने लगा है।
लेकिन अब स्थिति कुछ बेहतर रहने की उम्मीद है क्योंकि हिन्द महासागर का डायपोल काफी हद तक सकारात्मक हो गया है जिससे महासागर के पश्चिमी एवं पूर्वी भाग में तापमान भिन्न हो सकता है।
इसके फलस्वरूप नवम्बर में जब अल नीनो भयंकर रूप धारण करेगा तब भारत इसके प्रकोप से काफी हद तक बच सकता है। हिन्द महासागर का डायपोल लगातार मजबूत होता जा रहा है जो अल नीनो के प्रभाव को रोकने में मददगार साबित होगा दिसम्बर तक इस डायपोल के सकारात्मक रहने की उम्मीद है। इससे भारत को तो राहत मिलेगी मगर ऑस्ट्रेलिया को वर्षा की कमी का सामना करना पड़ सकता है।