iGrain India - अहमदाबाद । एक अग्रणी व्यापारिक संस्था- कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने 2022-23 के मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर-सितम्बर) के लिए आरंभिक चरण में 344 लाख गांठ कपास के घरेलू उत्पादन का अनुमान लगाया था जिसे क्रमिक रूप से घटाते हुए जुलाई में 311 लाख गांठ नियत किया था लेकिन मंडियों में होने वाली अच्छी आवक को देखते हुए अब उत्पादन का अनुमान कुछ बढ़ाकर 318 लाख गांठ निर्धारित किया है।
मालूम हो कि कपास की प्रत्येक 170 किलो की होती है। 30 सितम्बर 2023 को यह मार्केटिंग सीजन (2022-23) भी समाप्त हो चुका है जबकि 1 अक्टूबर से 2023-24 का नया मार्केटिंग सीजन आरंभ हो गया है।
उधर केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने अपने तीसरे अग्रिम अनुमान में 2022-23 सीजन के दौरान 343 लाख गांठ कपास के उत्पादन की संभावना व्यक्त की थी जबकि उद्योग-व्यापार समीक्षकों 2021-22 के सीजन में 299 लाख गांठ कपास के घरेलू उत्पादन का अनुमान लगाया था।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने 2022-23 सीजन के लिए कुछ राज्यों में कपास के उत्पादन अनुमान में बढ़ोत्तरी कर दी है। इसके तहत उत्पादन का अनुमान पंजाब में 25 हजार गांठ, गुजरात में 2.41 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 71 हजार गांठ, तेलंगाना में 50 हजार गांठ, आंध्र प्रदेश में 1.40 लाख गांठ, कर्नाटक में डेढ़ लाख गांठ, राजस्थान में 50 हजार गांठ तथा तमिलनाडु में 45 हजार गांठ बढ़ाया गया है। 7 अक्टूबर को एसोसिएशन की फसल अनुमान समिति की बैठक में इसका निर्णय लिया गया।
दरअसल कपास उत्पादन के सरकारी अनुमान एवं एसोसिएशन के अनुमान में भारी अंतर रहने से बाजार में असमंजस का माहौल बना हुआ था। उद्योग व्यापार समीक्षकों के अनुसार 2022-23 के सीजन में कपास का उत्पादन तो बेहतर हुआ लेकिन ऊंचे दाम मिलने की उम्मीद से किसानों द्वारा माल का स्टॉक रोके जाने से मंडियों में इसकी आपूर्ति की गति धीमी तथा मात्रा कम रही।
उल्लेखनीय है कि 2021-22 के मार्केटिंग सीजन में रूई का भाव उछलकर एक समय 1.00 लाख रुपए प्रति कैंडी (366 किलो) की सीमा को पार कर गया था लेकिन सितम्बर 2023 में यह घटकर राजस्थान, महाराष्ट्र, तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश जैसे उत्पादक राज्यों की महत्वपूर्ण मंडियों में 59,500 से 63,750 रुपए प्रति कैंडी के बीच रह गया।
वायदा एक्सचेंज में भी इसका औसत मूल्य 60,900 रुपए प्रति कैंडी रहा। पिछले साल की तुलना में चालू खरीफ सीजन के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर कपास का बिजाई क्षेत्र 128 लाख हेक्टेयर से घटकर 124 लाख हेक्टेयर के करीब रह गया जिससे इसके उत्पादन में गिरावट आने की संभावना बनी हुई है।