iGrain India - नई दिल्ली। यद्यपि इस बार गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में पिछले 15 वर्षों में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इस निर्णय से गेहूं का उत्पादन बढ़ाने तथा बाजार भाव को नियंत्रित करने में ज्यादा सहायता नहीं मिलेगी।
ज्ञात हो कि गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2022-23 सीजन के 2125 रुपए प्रति क्विंटल से 7 प्रतिशत का 150 रुपए बढ़ाकर 2023-24 सीजन के लिए 2275 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। इसके अलावा अन्य रबी फसलों- जौ, चना, मसूर, सरसों एवं कुसुम (सैफ्लावर) के समर्थन मूल्य में भी अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है।
सरकार को घोषित उद्देश्य तो समर्थन मूल्य बढ़ाकर किसानों को अधिक से अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना है लेकिन इस बार गेहूं के एमएसपी में हुई भारी बढ़ोत्तरी को राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
वैसे कुछ राज्यों में वर्षा का अभाव होने तथा बांधों-जलाशयों में पानी का भंडार कम रहने से गेहूं की बिजाई एवं प्रगति पर असर पड़ने की संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को पानी की उपलब्धता बढ़ाने पर विशेष जोर देना चाहिए।
अगले साल अप्रैल में गेहूं का जो नया माल आना शुरू होगा उससे किसानों को तो 2275 रुपए प्रति क्विंटल का ऊंचा मूल्य प्राप्त होगा लेकिन यदि उपज दर नीचे रहने से पैदावार में इजाफा नहीं हुआ तो उसे इसका पूरा फायदा नहीं मिल पाएगा।
दूसरी ओर बाजार में भी कुछ तेजी-मजबूती का माहौल रह सकता है जबकि पहले से ही इसका दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊंचे स्तर पर बरकरार है।
केन्द्रीय पूल में गेहूं का योगदान देने वाले पांच शीर्ष राज्यों- पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में से दो प्रांतों- मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में अगले महीने विधानसभा का चुनाव होने वाला है इसलिए समर्थन मूल्य में हुई जोरदार बढ़ोत्तरी से वोट बैंक पर कुछ असर पड़ने की उम्मीद की जा रही है।