बीजिंग, 15 जुलाई (आईएएनएस)। चीन में एक अधिकारी थे, जिनका नाम जिओ युलु था। हालांकि उनकी मृत्यु वर्ष 1964 में हो गयी थी। लेकिन, उनकी भावना अब भी हर चीनी नागरिक के मन में बसी हुई है। बताया जाता है कि दिसंबर 1962 में जिओ युलु चीन के हनान प्रांत की लैनखाओ काउंटी में जाकर सीपीसी की शाखा कमेटी के सचिव बने। 1962 से 1964 के दौरान यह काउंटी जलभराव, रेतीला तूफ़ान और लवणता की गंभीर तीन समस्याओं से त्रस्त थी। जिओ युलु ने वास्तविक स्थिति के अनुसार काउंटी के अधिकारियों और लोगों के साथ गंभीर प्राकृतिक चुनौतियों के खिलाफ संघर्ष किया और लैनखाओ काउंटी का चेहरा बदलने का प्रयास किया। कैंसर से पीड़ित होने के कारण उन्होंने काफी दर्द सहा, फिर भी अपने काम में लगे रहे। अपने व्यावहारिक कार्यों से, उन्होंने "जिओ युलु भावना" को पैदा किया।
14 मई,1964 को हनान प्रांत की राजधानी चनचो में लिवर कैंसर से जिओ युलु का निधन हो गया। अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने एक अनुरोध किया था कि मरने के बाद, " उन्हें लैनखाओ वापस ले जाया जाए और रेत में दफनाया जाए। उनका कहना था कि मैंने जीवित रहते हुए मरुस्थलीकरण का अच्छी तरह से प्रबंधन नहीं किया, लेकिन जब मैं मरूंगा तो मैं आप लोगों को मरुस्थलीकरण का अच्छी तरह से प्रबंधन करते हुए देखूंगा।"
जिओ युलु की भावना से प्रेरित होकर मार्च 2017 में लैनखाओ गरीबी से छुटकारा पाने वाली हनान प्रांत की पहली काउंटी बनी। वर्तमान में पाउलाउनिया पेड़ों से संगीत वाद्ययंत्र और फ़र्नीचर बनाना लैनखाओ में एक महत्वपूर्ण उद्योग बन गया है।
ध्यानाकर्षक बात यह है कि ये पाउलाउनिया पेड़ उस समय जिओ युलु के नेतृत्व में स्थानीय लोगों द्वारा लगाए गए थे। हालांकि, अब गरीबी के खिलाफ चीन द्वारा की गयी लड़ाई में व्यापक जीत हासिल हुई है। यह कहा जा सकता है कि गरीबी उन्मूलन अभियान खत्म हो गया है। लेकिन, जिओ युलु की भावना नहीं!
गौरतलब है कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने फ़ूचो सांध्य अख़बार में जिओ युलु भावना को याद करने के लिये एक कविता भी लिखी। शी चिनफिंग के अनुसार पूरे दिल से लोगों की सेवा करना चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मूल उद्देश्य और जिओ युलु की भावना का सार है।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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