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विश्व मूल निवासी दिवस को आदिवासी दिवस के रूप में मनाना एक षडयंत्र, क्योंकि 'सभी भारतवासी मूल निवासी' : वनवासी कल्याण आश्रम

प्रकाशित 09/08/2024, 01:58 am
विश्व मूल निवासी दिवस को आदिवासी दिवस के रूप में मनाना एक षडयंत्र, क्योंकि \'सभी भारतवासी मूल निवासी\' : वनवासी कल्याण आश्रम

नई दिल्ली, 8 अगस्त (आईएएनएस)। 9 अगस्त को विश्व मूल निवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यूरोप के इसाई देशों से औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा विभिन्न देशों में निवास करने वाले वहां के मूल निवासियों को उनकी भूमि से बेदखल कर उनके देश पर कब्जा किया गया। अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा ऐसे अनेक देशों में वहां के मूल निवासियों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया गया। अपनी वृहद महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए औपनिवेशिक शक्तियों ने अपनी शक्ति के बल पर जिन लाखों मूल निवासियों का नरसंहार किया, इन सभी मृतकों को हम वनवासी कल्याण आश्रम की तरफ से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

औपनिवेशिक शक्तियों के चंगुल से जो लोग जीवित रहे, ऐसे लोगों के वंशज आज भी अपने देश में स्वाभिमान और हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन सभी मूल निवासियों के प्रति वनवासी कल्याण आश्रम संवेदना व्यक्त करती है। ऐसे मूल निवासियों के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने 9 अगस्त यह 'विश्व मूलनिवासी दिवस' घोषित किया है।

देखा जाए तो भारत का इस विश्व मूल निवासी दिवस से कुछ सीधा संबंध नहीं है, क्योंकि भारत में रहने वाले सभी नागरिक इसी देश के मूल निवासी हैं, ऐसा हमारा मानना है।

भारत सरकार ने भी 2007 में संयुक्त राष्ट्र के इस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर के द्वारा स्पष्ट करते हुए कहा था कि भारत में सभी लोग यहां के मूल निवासी हैं, यह बात स्पष्ट की थी। जबकि, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड जैसे देश जहां आज भी औपनिवेशिक शक्तियां राज कर रही हैं, इस घोषणा पत्र में हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं हुए।

इसके साथ ही कुछ अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां एवं इसाई मिशनरियों ने भारतीय समाज को हानि पहुंचाने के लिए जाति के आधार पर समाज को बांटने का एक व्यापक षड्यंत्र चला रखा है। वनवासी कल्याण आश्रम के संस्थापक बालासाहब देशपांडे ने इस षड्यंत्र को 1992 में ही भांप लिया था। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी. नरसिंह राव को एक विस्तृत ज्ञापन देकर इस मूलनिवासी दिवस का भारत में मनाने के पीछे का उद्देश्य, इस दिवस के पीछे के षड्यंत्र और इस षड्यंत्र को अंजाम देने वाली अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों के बारे में ज्ञापन सौंपा था, जिसमें विस्तृत विवरण दिया गया था।

बता दें कि यहां के जनजाति समाज को इस देश का मूलनिवासी मानकर उनको इस 'मूल निवासी दिवस' के साथ जोड़ने का प्रयास इन शक्तियों द्वारा आज भी जोरों से किया जा रहा है। दुर्भाग्य से जनजाति क्षेत्र के ही कुछ संगठन इस षड्यंत्र को नहीं समझते हुए 'विश्व मूल निवासी दिवस' को 'आदिवासी दिवस' के रूप में मना रहे हैं। इस दिवस की आड़ में जनजाति युवाओं को भ्रमित कर उनमें एक अलगाव का भाव भरने के प्रयास भी हो रहे हैं। हमारा मानना है कि जनजाति समाज इसी मिट्टी में पली भारतीय संस्कृति, परंपरा का एक अभिन्न घटक है। देश के विभिन्न वनों-पर्वतों में, गांव-शहरों में रहने वाले लोगों के रहन-सहन, वेषभूषा-भाषा, रीति-रिवाज भिन्न होते हुए भी सभी सांस्कृतिक एकता के एक सूत्र में बंधे हुए हैं।

जनजाति समाज के लिए भी उत्सव के रूप में एक किसी निश्चित दिवस की आवश्यकता है। ऐसा मत वनवासी कल्याण आश्रम का था। ऐसे में पिछले 7-8 सालों से 15 नवंबर को हम भगवान बिरसा मुंडा का जन्म जयंती दिवस, राष्ट्रीय जनजाति गौरव दिवस के रूप में मना रहे थे। केंद्र सरकार ने भी जनजाति भावना का उचित सम्मान करते हुए 2021 को 15 नवंबर को इसे राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस घोषित कर एक अभिनंदनीय कदम उठाया।

सही अर्थों में यही दिवस भारत के जनजाति वीर-वीरंगनाओं के अतुलनीय योगदान के प्रतीकात्मक रूप से जनजाति समाज का गौरव दिवस है, ऐसा वनवासी कल्याण आश्रम का मानना है। जहां तक मूलनिवासी का विषय है, हमारा यह स्पष्ट मत है कि सभी भारतवासी इसी देश के मूल निवासी हैं।

--आईएएनएस

जीकेटी/

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