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आज वक्फ, कल मंदिर फिर ट्रस्ट में दखल करेंगे : सलमान खुर्शीद  (आईएएनएस साक्षात्कार)

प्रकाशित 10/08/2024, 01:03 am
आज वक्फ, कल मंदिर फिर ट्रस्ट में दखल करेंगे : सलमान खुर्शीद  (आईएएनएस साक्षात्कार)
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नई दिल्ली, 9 अगस्त (आईएएनएस)। वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर सियासी बयानबाजी के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का कहना है कि संविधान के तहत माइनॉरिटी को मिले हक में दखल देने की कोशिश की जा रही है। शुक्रवार को आईएएनएस से खास बातचीत के दौरान उन्होंने 'वक्फ एक्ट संशोधन बिल-2024' से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से बात की। साथ ही उन्होंने दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम और आम आदमी पार्टी (आप) नेता मनीष सिसोदिया को 17 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की।

सवाल :- संसद में वक्फ बोर्ड बिल पेश किया गया, जिसके बाद बिल को ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) के पास भेज दिया गया। इस पूरे बिल को आप किस तरह से देखते हैं?

जवाब :- देखिए, दो बातें हैं, जो जेहन में रखनी चाहिए। पहली बात यह है कि जब कोई चीज पार्लियामेंट के सामने है या जो संसद की प्रक्रिया है, उसमें गौर होगा। बाहर से उस पर कमेंट्री करते रहे शायद वह ठीक नहीं होगा। बहरहाल, बिल ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री के सामने जाएगा। वहां जिसको अपनी बात रखनी होगी, वह अपनी बात रखेंगे। आपस में चर्चा होगी। चर्चा के बाद जो भी सही होगा, जो भी सुझाव और प्रपोजल है, वह पार्लियामेंट के सामने आएंगे। इसके बाद पार्लियामेंट में फिर से बहस होगी और इसके बाद फैसला होगा। क्योंकि, यह पब्लिक इंटरेस्ट का मामला है। मैं समझता हूं कि पार्लियामेंट में भी इन्हीं बातों पर गौर होगा। इस वक्त मुल्क में ऐसा माहौल बना है कि जो स्पेसिफिक दायरे हैं, जिससे खास ताल्लुक, खासतौर पर माइनॉरिटी से है। चाहे वह एक माइनॉरिटी हो या दूसरी माइनॉरिटी हो। उसमें ऐसा लग रहा है कि कोशिश हो रही है कि उसमें बार-बार दखल हो। कौन सही है, कौन गलत है, यह तो बहस की बात है। बहुत सारी बातें चल रही है, जैसे यूसीसी की बात हो रही है। मदरसों की बात चल रही है। माइनॉरिटी के बहुत सारे मामले चल रहे हैं, जैसा कि मौलाना आजाद फाउंडेशन का स्कॉलरशिप का मामला चल रहा है। बहुत सारे फैसले हो रहे हैं, जो कुछ इंडीकेशन दे रहे हैं कि माइनॉरिटी के जो अधिकार हैं, उन पर बंदिश लगाई जाए।

वक्फ क्या सब दुनिया जानती है, कानून बहुत पुराना है। वक्फ की जायदाद का फैसला वक्फ करता है। लेकिन, अब सरकारी कलेक्टर (मुलाजिम) करेगा कि कौन सी जमीन वक्फ की है, कौन सी सरकारी है। दिल्ली में 123 वक्फ का मामला है। वह सरकार कहे कि यह फैसला तो कलेक्टर करेगा कि ट्रिब्यूनल नहीं करेगा। यह तो गलत होगा न। ट्रिब्यूनल किसलिए बनाए गए हैं। ट्रिब्यूनल इसलिए बनाए गए हैं कि वह फैसला करें, आप एक जज, दो जज का ट्रिब्यूनल कर दिया, इससे किसी को परेशानी नहीं हो सकती है। दो जज एक जज से बेहतर होते हैं। ट्रिब्यूनल से यह मामला, वक्फ बोर्ड से यह मामला, एक सरकारी कलेक्टर को दे रहे हैं, इसका एक मसला हो सकता है। दूसरी बात वक्फ बाई यूजर? यह कॉन्सेप्ट है, जो पुराने जमाने से चले आ रहे हैं। कुछ बुनियादी सवाल हैं। किसी का यह कहना है कि यह आवाम की भलाई के लिए कर रहे हैं, इस पर गुफ्तगू होगी। इस वक्त ऐसा लगता है कि उनमें दखल किया जा रहा है, जो माने जाते हैं कि जो माइनॉरिटी के हैं, जो संविधान के तहत जो हक माइनॉरिटी को मिले हुए हैं, उसमें दखल दिया जा रहा है। यह लोगों की राय है। संसद में हर दल अपनी बात रखेंगे। फिर इसके बाद तय होगा कि क्या होना चाहिए।

सवाल :- भाजपा का कहना है कि भारत में जितनी शक्ति वक्फ को दी गई, उतनी शक्ति कहीं भी नहीं दी गई, चाहे पाकिस्तान की बात करें?

जवाब :- पाकिस्तान की बात क्यों करें? हर चीज हम पाकिस्तान से सीखेंगे। पाकिस्तान को हमसे सीखना चाहिए। हम क्यों दूसरे देश की बात करें? हम अपने देश की बात करें। क्या हमारे बुजुर्गों ने समझा और क्या किया। और, इसकी निगरानी तो कोर्ट करती है, ट्रिब्यूनल तो एक तरह का कोर्ट ही है। कोर्ट में भरोसा नहीं करते हैं, क्या खुलकर कहें कि हमें भरोसा कलेक्टर पर होगा?

सवाल :- जब-जब इस बिल में संशोधन किए गए, तब इस बिल में कई सारी पावर रखी गई। ऐसा कहना है कि उस पावर का गलत फायदा उठाया गया है?

जवाब :- मैं भी अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री रह चुका हूं। मैंने भी संशोधन किए थे। मेरे द्वारा किए गए संशोधन पर भी चर्चा हुई थी। 95 का एक्ट इतने दिनों तक चला और कामयाब रहा। अब आप उसमें फिर से कुछ बदलाव करना चाहते हैं। आप डेटा दीजिए कि आप क्यों कर रहे हैं। यह कहना कि लोग इसका फायदा उठाते हैं, ट्रिब्यूनल को कहने दीजिए कि लोग इसका फायदा उठा रहे हैं। पाकिस्तान का जिक्र करते हुए वहां ऐसा होता है, हमें दूसरे मुल्क से क्या लेना-देना है? हिंदुस्तान में कैसा होता है, हमें इस बात पर गौर करना चाहिए। आज दखल वक्फ में करेंगे, कल मंदिरों में करेंगे। इसके बाद ट्रस्ट में करेंगे। किस-किस चीज में दखल करेंगे, यह सवाल उठता है।

सवाल :- दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को 17 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट से बेल मिली है, इस पर क्या कहना चाहेंगे?

जवाब :- देखिए, जमानत किसी को भी मिले, कोर्ट सोच-समझकर देता है। कोर्ट ने 17 महीने के बाद जमानत दी है तो कुछ समझकर दिया होगा। 17 महीने में आप केस को आगे नहीं बढ़ा पाए हैं, 17 महीने निकल गए हैं और 17 महीने निकल जाएंगे। यह जिम्मेदारी सरकार की होती है कि केस को जल्दी से जल्दी आगे बढ़ाए। जितना मैंने समझा है कि कोर्ट ने कहा कि इतनी जो देर हुई है, उसमें मनीष सिसोदिया का कोई दोष नहीं है। इसी वजह से उन्हें बेल मिल गई है। हालांकि, मनीष सिसोदिया को मिला यह बेल यह नहीं कहता है कि उन पर लगे आरोप सही हैं या फिर गलत। बेल इसलिए मिली ताकि केस का जल्दी से जल्दी फैसला हो सके।

--आईएएनएस

एसके/एबीएम

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