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'भारतीय क्रांति की जननी' भीकाजी कामा, जिन्होंने विदेशी धरती पर लहराया भारत का झंडा

प्रकाशित 13/08/2024, 04:07 pm
\'भारतीय क्रांति की जननी\' भीकाजी कामा, जिन्होंने विदेशी धरती पर लहराया भारत का झंडा

नई दिल्ली, 13 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख हस्ती भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर, 1861 को एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता सोराबजी फ्रामजी पटेल एक प्रसिद्ध व्यापारी थे और बंबई शहर में व्यवसाय, शिक्षा और परोपकार के मामले में सबसे अग्रणी व्यक्ति माने जाते थे।'भारतीय क्रांति की जननी' के रूप में ख्याति अर्जित करने वाली भीकाजी कामा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बॉम्बे (मुंबई) में प्राप्त की। 1885 में उन्होंने एक प्रसिद्ध वकील रुस्तमजी कामा से विवाह किया, लेकिन सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों में उनकी भागीदारी के कारण दंपति के बीच मतभेद हो गए।

मैडम कामा का जीवन अक्टूबर 1896 में बदल गया जब बॉम्बे प्रेसीडेंसी में भयंकर अकाल पड़ा। उसके बाद इस क्षेत्र में ब्यूबोनिक प्लेग महामारी फैल गई। मैडम कामा ने खुद को सामाजिक कार्यों में झोंक दिया और प्रभावित लोगों की देखभाल और राहत प्रदान करना शुरू कर दिया। दुर्भाग्य से वह खुद भी इस भयानक बीमारी की चपेट में आ गई लेकिन बच गईं। हालांकि उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल तौर पर प्रभाव पड़ा।

उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए लंदन भेजा गया। वैवाहिक समस्याओं और अपने खराब स्वास्थ्य के कारण कामा चिकित्सा लाभ लेने के लिए भारत छोड़कर लंदन चली गई। वहां रहने के दौरान उनकी मुलाकात अंग्रेजों के कट्टर आलोचक दादाभाई नौरोजी से हुई। उनके आदर्शों से प्रेरित होकर वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ीं।

उन्होंने श्यामजी वर्मा, लाला हरदयाल जैसे अन्य भारतीय राष्ट्रवादियों से भी मिलना शुरू किया और जल्द ही आंदोलन की सक्रिय सदस्यों में से एक बन गईं। उन्होंने स्वराज के उद्देश्य का प्रचार करते हुए इंग्लैंड में भारतीय समुदाय के लिए पुस्तिकाएं प्रकाशित करना शुरू किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से घोषणा की, "आगे बढ़ो! हम भारत के लिए हैं। भारत भारतीयों के लिए है!" उन्होंने अमेरिका का दौरा किया, वहां ब्रिटिश शासन के दुष्प्रभावों पर भाषण दिए और अमेरिकियों से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करने का आग्रह किया।

मैडम भीकाजी कामा 22 अगस्त 1907 को विदेशी धरती पर भारतीय ध्वज फहराने वाली पहली व्यक्ति बनी। जर्मनी के स्टटगार्ट में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ध्वज फहराते हुए उन्होंने ब्रिटिशों से समानता और स्वायत्तता की अपील की।

13 अगस्त 1936 को, भीकाजी कामा ने बॉम्बे में अंतिम सांस ली। उनकी जन्म शताब्दी पर सम्मान देने के लिए 1962 में एक डाक टिकट जारी किया।

--आईएएनएस

एकेएस/केआर

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