नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)। पिछले साल, 28 सितंबर 2023 को बीसीसीआई सचिव जय शाह ने मंच से एक इवेंट के दौरान कहा था हमने शुरुआत कर दी है। बीसीसीआई ने पुरुष और महिला क्रिकेटर्स को एक समान राशि देने का फैसला किया उसके बाद आईसीसी समेत दुनिया के कई बड़े खेल आयोजकों ने ये निर्णय लिया। उन्होंने ही बताया कि आईसीसी, इंग्लिश क्रिकेट बोर्ड और यूएस ओपन में भी पे पैरिटी या इक्वल पे को लागू कराया गया। तो भारत ने दुनिया को समानता का पाठ 21वीं सदी में भी पढ़ाया। विश्व के बड़े देश जो समानता और लिंग आधारित असमानता न करने का दम भरते हैं वहां भी महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम आंका जाता है। यही कारण है कि हर साल 18 सितंबर को इंटरनेशनल इक्वल पे डे यानि अंतर्राष्ट्रीय समान वेतन दिवस मनाया जाता है। लक्ष्य सिर्फ एक कि सबके साथ न्याय हो।
हर क्षेत्र में ऐसा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक वैश्विक स्तर पर महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 20 प्रतिशत कम वेतन मिलता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, श्वेत पुरुषों के हर डॉलर के मुकाबले अश्वेत महिलाएं केवल 63.7 सेंट, मूल निवासी महिलाएं 59 सेंट और लैटिन महिलाएं 57 सेंट कमाती हैं। तो असमानता यहां भी जबरदस्त है।
बीसीसीआई ने राह दिखाई लेकिन ये भी सच है कि हम भारतीयों के मनोरंजन का एक और उद्योग अभी भी इस मामले में पिछड़ा है। वो है बॉलीवुड। ज्यादा दिन नहीं हुए जब ग्लोबल स्टार प्रियंका चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें मनोरंजन जगत में समान वेतन पाने के लिए 22 साल लंबा इंतजार करना पड़ा। इन 22 सालों का मतलब बॉलीवुड से था।
प्रियंका से पहले लारा दत्ता ने भी ऐसा ही कुछ कहा था। हाल ही में क्रू स्टार कृति सेनन ने भी कुछ ऐसी ही सोच से रूबरू कराया। उन्होंने कहा कि अजीब है पर सच है कि बॉलीवुड में दस साल में एक भी हिट न देने वाले हीरो को 10 गुना ज्यादा फीस महिला एक्टर के मुकाबले मिलती है। दुनिया मानती है कि असमानता की खाई बड़ी है और इसे पाटना मुश्किल है। समान वेतन दिवस इसी ओर बढ़ाया एक कदम है। यह दिन वेतन अंतर को कम करने के उद्देश्य से बातचीत को प्रोत्साहित करता है।
--आईएएनएस
केआर/