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संसदीय समिति ने आईपीसी 377, व्यभिचार पर प्रावधान, नाबालिगों से सामूहिक दुष्‍कर्म के लिए मौत की सजा बरकरार रखने की सिफारिश की

प्रकाशित 15/11/2023, 02:52 am
संसदीय समिति ने आईपीसी 377, व्यभिचार पर प्रावधान, नाबालिगों से सामूहिक दुष्‍कर्म के लिए मौत की सजा बरकरार रखने की सिफारिश की

नई दिल्ली, 14 नवंबर (आईएएनएस)। एक संसदीय समिति ने तीन आपराधिक विधेयकों पर सरकार को कई सुझाव दिए हैं, जिसमें आईपीसी की धारा 377 को वापस लाना, जिसे 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से रद्द कर दिया था, और व्यभिचार प्रावधान को बरकरार रखना शामिल है। गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति के प्रमुख भाजपा सांसद बृज लाल ने मंगलवार को आईएएनएस से कहा, “पैनल ने तीनों विधेयकों में कई चीजें जोड़ने की सिफारिश की है। विधेयकों में कई नई चीजें हैं।”

उन्होंने कहा, “पहले की तरह, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संगठित अपराध का कोई उल्लेख नहीं था, जिसे हमने जोड़ा है। कई अपराधों को हमने 'गंभीर' करार दिया है, जैसे कि नाबालिगों से सामूहिक दुष्‍कर्म के दोषियों के लिए मौत की सजा।''

बृज लाल ने कहा, “धारा 497 के तहत व्यभिचार पर सुझाव जोड़ा गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त कर दिया था। अब हमने इसे लिंग तटस्थ बना दिया है, जिससे दोनों (पुरुष और महिला) जिम्मेदार होंगे।”

पैनल के अनुसार, व्यभिचार पर प्रावधान इसलिए जोड़ा गया है, क्योंकि "विवाह संस्था पवित्र है" जिसे "संरक्षित" किया जाना चाहिए।

पैनल ने पिछले शुक्रवार को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) विधेयकों पर राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

भाजपा सांसद ने कहा, "हमने आईपीसी की धारा 377 को वापस लाने के लिए कुछ सिफारिशें की हैं।"

6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 को आंशिक रूप से रद्द कर दिया गया था, इस प्रकार सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया था।

बृज लाल ने कहा, “पैनल ने तीन विधेयकों में कई अन्य बदलावों की भी सिफारिश की है। नए पहलुओं में से जो पहले आईपीसी में नहीं थे, हमने संगठित अपराध को जोड़ा है।”

भाजपा सांसद ने कहा, "इसके अलावा, छोटे अपराधों के लिए हमने जेल की सजा के स्थान पर सामुदायिक सेवा की सिफारिश की है।" उन्होंने कहा कि पैनल ने सामुदायिक सेवा पर निर्णय राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है।

उन्होंने कहा, "इसके जरिए जेल की सजा काट चुके और जुर्माना भरने में असमर्थ गरीबों को सामुदायिक सेवा अपनानी पड़ती है।"

बृज लाल ने साक्ष्य अधिनियम के बारे में कहा, "हमने सुझाव दिया है कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ को कैसे रोका जाए, क्योंकि यह डिजिटल युग है।"

उन्होंने यह भी कहा कि बचाव पक्ष के वकीलों द्वारा अदालतों में बार-बार स्थगन को देखते हुए "हमने एक मामले में अधिकतम दो स्थगन की सिफारिश की है"।

बृज लाल ने कहा, "हमने यह भी सिफारिश की है कि यदि कार्यवाही और सुनवाई पूरी हो गई है, तो अदालत को एक महीने के भीतर फैसला सुनाना होगा।"

इस साल अगस्त में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक पेश करने के तुरंत बाद, उन्होंने अध्यक्ष से इन उपायों को उनकी जांच के लिए स्थायी समिति के पास भेजने का आग्रह किया था।

ब्रिटिश काल के कानूनों को बदलने के लिए तीन विधेयक मानसून सत्र के दौरान संसद में पेश किए गए थे।

फिर तीनों विधेयकों को संसद की चयन समिति के पास भेज दिया गया, जिसे तीन महीने के भीतर यानी नवंबर 2023 तक अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया।

विधेयकों को पेश करते समय शाह ने कहा था कि वे भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदल देंगे। उन्होंने कहा कि ये बदलाव त्वरित न्याय प्रदान करने और एक कानूनी प्रणाली बनाने के लिए किए गए हैं, जो लोगों की समकालीन जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करती है।

इस महीने की शुरुआत में संसदीय पैनल ने कई संशोधनों की पेशकश करने वाली तीन रिपोर्टों को अपनाया था, लेकिन उनके हिंदी नामों पर कायम रहे, लगभग 10 विपक्षी सदस्यों ने असहमति नोट प्रस्तुत किए।

--आईएएनएस

एसजीके

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