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केरल की गठबंधन राजनीति में आईयूएमएल के अगले कदम को लेकर अटकलें तेज

प्रकाशित 23/07/2023, 01:07 am
केरल की गठबंधन राजनीति में आईयूएमएल के अगले कदम को लेकर अटकलें तेज

तिरुवनंतपुरम, 22 जुलाई (आईएएनएस)। केरल हमेशा राजनीतिक जोड़-तोड़ के लिए एक प्रयोगशाला रहा है। यहां 1960 के दशक के अंत में गठबंधन की राजनीति की शुरुआत हो चुकी थी। सीपीआई-एम नेता और केरल के पहले मुख्यमंत्री, दिवंगत ई.एम.एस. नंबूदरीपाद, जो बाद में पार्टी के महासचिव बने, ने 1967 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में संयुक्त मोर्चा सरकार के साथ प्रयोग किया और सात पार्टियों के गठबंधन का नेतृत्व किया।

वास्तव में, ई.एम.एस. ने 1957 में जीतकर पहले लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रचा था।

उनकी संयुक्त मोर्चा सरकार में 1967 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), संघता सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी), मुस्लिम लीग (एमयूएल), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), कार्षका थोझिलाली पार्टी (केटीपी) और केरल सोशलिस्ट पार्टी (केएसपी) शामिल थीं।

गठबंधन के पास विधानसभा के 133 सदस्यों में से 117 का आरामदायक आंकड़ा था। ई.एम.एस. ने 6 मार्च 1967 को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। हालाँकि आंतरिक असंतोष के कारण सरकार गिर गई और ई.एम.एस. ने 24 अक्टूबर1969 को इस्तीफा दे दिया।

सी. अच्युता मेनन ने 4 अक्टूबर 1970 को दूसरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और 25 मार्च 1977 तक मुख्यमंत्री बने रहे, क्योंकि आपातकाल के दौरान कोई चुनाव नहीं हुआ था।

अच्युता मेनन के नेतृत्व वाली सरकार में कांग्रेस नेता के. करुणाकरण और मुस्लिम लीग के दिग्गज सी.एच. मोहम्मद कोया शामिल थे।

उस समय से, केरल में कभी एक पार्टी की सरकार नहीं रही। राज्य में अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं वाली लेकिन एक समान लक्ष्य के लिए एकजुट पार्टियों की गठबंधन सरकारें रही हैं।

केरल की गठबंधन राजनीति अब एक तरफ माकपा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के साथ अधिक संगठित है। दिलचस्प बात यह है कि एलडीएफ में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस-एस जैसी पार्टियां हैं, जबकि यूडीएफ में एक क्रांतिकारी पार्टी, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक और कम्युनिस्ट मार्क्सवादी पार्टी (सीएमपी) हैं।

जबकि एनसीपी, कांग्रेस-एस, आरएसपी, सीएमपी और फॉरवर्ड ब्लॉक छोटी पार्टियां हैं, कांग्रेस और माकपा जैसी बड़ी पार्टियां उनके नेताओं के करिश्मे के कारण उन पार्टियों को शामिल करती हैं। राकांपा और कांग्रेस-एस जैसी कांग्रेस वंशावली वाली पार्टियों का माकपा गठबंधन में शामिल होना कांग्रेस की विचारधारा वाले मतदाताओं को वाम गठबंधन के लिए वोट देने के लिए एक चतुर राजनीतिक कदम था।

इसी तरह, आरएसपी, सीएमपी और फॉरवर्ड ब्लॉक यूडीएफ का हिस्सा होने के साथ कांग्रेस के पास भी लाल पार्टियां हैं।

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नेतृत्व में सीपीआई-एम के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार के 2021 में लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने के साथ, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) को वाम मोर्चे में शामिल करने की मांग हो रही है और इस संबंध में चर्चा भी हुई है।

उल्‍लेखनीय है कि शक्तिशाली ईसाई राजनीतिक दल, केरल कांग्रेस, जो हमेशा कांग्रेस के साथ खड़ा रहा है, यूडीएफ छोड़कर वाम मोर्चे में शामिल हो गया था। सांसद जोस के. मणि के नेतृत्व वाली केरल कांग्रेस का यह बदलाव, मध्य केरल में वाम दलों के लिए अप्रत्याशित परिणाम के रूप में आया है, जहां एक बड़ी ईसाई आबादी है।

भले ही मुस्लिम लीग नेताओं ने वाम मोर्चे में शामिल होने के किसी भी कदम से इनकार किया है, लेकिन दोनों खेमों के सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि इस तरह के कदम से इनकार नहीं किया जा सकता है।

राज्य के मुस्लिम समुदाय के बीच एक आम धारणा है कि भाजपा के नेतृत्व वाले हिंदुत्व आंदोलन का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस की तुलना में माकपा ज्‍यादा कारगर होगी। इसलिए, वाम मोर्चे का समर्थन करने से आईयूएमएल के मूल मुस्लिम वोट बैंक पर असर नहीं पड़ेगा।

माकपा एक अच्छी पार्टी मशीनरी के साथ राज्य की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। आईयूएमएल के साथ गठबंधन से उसे उत्तरी केरल में जीत हासिल करने में मदद मिलेगी और यह केरल में कांग्रेस के अंत की शुरुआत होगी।

राजनीतिक विश्लेषक और कांग्रेस पर्यवेक्षक रॉय मैथ्यू ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "आईयूएमएल एक मजबूत राजनीतिक दल है जिसकी स्पष्ट राजनीतिक विचारधारा है और उस पार्टी के कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को छोड़ने की कोई संभावना नहीं है।"

माकपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां छोटी राजनीतिक पार्टियों के साथ गठबंधन कर रही हैं क्योंकि केरल कांग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसी पार्टियों की पृष्ठभूमि ने उन्‍हें उन समुदायों का विश्वास और समर्थन हासिल करने में मदद की, जिनसे ये पार्टियां जुड़ी हुई थीं।

केरल कांग्रेस मुख्य रूप से एक ईसाई राजनीतिक दल है और आईयूएमएल एक मुस्लिम राजनीतिक दल है।

--आईएएनएस

एकेजे

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