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विवाद की जड़ें 1892 तक जाती हैं जब माना जाता था कि मद्रास को मिलती है तरजीह

प्रकाशित 26/08/2023, 08:18 pm
विवाद की जड़ें 1892 तक जाती हैं जब माना जाता था कि मद्रास को मिलती है तरजीह

नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु ने 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कर्नाटक को उसकी फसलों के लिए हर दिन नदी से 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश देने का अनुरोध किया। शीर्ष अदालत कावेरी नदी के पानी के बंटवारे पर सदियों पुराने अंतर-राज्य विवाद की सुनवाई के लिए एक पीठ गठित करने पर सहमत हो गया।दोनों दक्षिणी राज्यों के बीच इस विवाद की उत्पत्ति आजादी से दशकों पहले 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों से मानी जा सकती है।

कर्नाटक स्वतंत्रता-पूर्व समझौतों को इस आधार पर मानने से इनकार करता है कि यह मद्रास प्रेसीडेंसी के पक्ष में है, जो आज तमिलनाडु का अधिकांश हिस्सा है। इसलिए, वह जल के न्यायसंगत बंटवारे के आधार पर समाधान की मांग करता है। वह समकालीन समय में नदी के प्रवाह के आधार पर पानी का हिस्‍सा चाहता है।

तमिलनाडु अपने रुख पर अड़ा हुआ है कि चूंकि उसने लगभग 12 हजार वर्ग किमी कृषि भूमि का विकास किया है और वह उपयोग के इस पैटर्न पर इस हद तक निर्भर है कि पैटर्न में कोई भी बदलाव राज्य के हजारों किसानों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

पुरातन समझौते में उन क्षेत्रों को ध्यान में रखा गया था जो मैसूर साम्राज्य और विशाल मद्रास प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आते थे। हालाँकि, कावेरी नदी के पानी को साझा करने के उद्देश्य से जिन क्षेत्रों पर विचार नहीं किया गया, वे थे दक्षिण केनरा, जो मद्रास प्रेसीडेंसी में पड़ता था, और कूर्ग प्रांत, जो अब कर्नाटक का हिस्सा है।

दरअसल, कावेरी नदी का उद्गम कूर्ग से होता है, लेकिन तत्कालीन प्रांत को समझौते से बाहर रखा गया था, जिससे समझौते की वैधता पर सवाल खड़ा हो गया।

इस विवाद पर बातचीत का दशकों तक कोई स्थायी प्रभाव नहीं रहा। स्वतंत्रता के बाद, एक प्रभावशाली निर्णय तब आया जब केंद्र सरकार ने कदम उठाया और 2 जून 1990 को मामले को देखने के लिए एक न्यायाधिकरण का गठन किया।

अगले 16 वर्षों में न्यायाधिकरण ने इसमें शामिल सभी पक्षों को सुना और 5 फरवरी 2007 को अपना फैसला सुनाया।

हालाँकि, इस फैसले से विवाद का समाधान नहीं हुआ। सभी चार राज्यों ने आदेश पर फिर से बातचीत करने की मांग करते हुए समीक्षा याचिकाएं दायर कीं।

कावेरी कर्नाटक से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले तमिलनाडु और पांडिचेरी से होकर गुजरती है। इस नदी बेसिन का कुल जलग्रहण क्षेत्र 81,155 वर्ग किमी है जो कर्नाटक में लगभग 34,273 वर्ग किमी, केरल में 2,866 वर्ग किमी और तमिलनाडु और पांडिचेरी में लगभग 44,016 वर्ग किमी के जलग्रहण क्षेत्र को जोड़ता है।

कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) ने तीन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश के बीच जल विवाद पर फैसला सुनाया।

सीडब्ल्यूडीटी ने 25 जून 1991 को एक अंतरिम आदेश पारित कर कर्नाटक को एक सामान्य वर्ष में जून से मई तक अपने जलाशय से तमिलनाडु के लिए 192 टीएमसी पानी छोड़ने का निर्देश दिया।

आदेश में स्पष्ट किया गया कि किसी विशेष महीने के संदर्भ में चार सप्ताह में चार समान किस्तों में पानी जारी किया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है, तो अगले सप्ताह में पानी की कमी की मात्रा जारी की जानी चाहिए।

यह भी आदेश दिया गया कि तमिलनाडु द्वारा पांडिचेरी के कराईकल क्षेत्र को छह टीएमसी पानी विनियमित तरीके से दिया जाएगा।

तमिलनाडु सरकार ने 14 मई 1992 को सीडब्ल्यूडीटी के निर्णयों को प्रभावी बनाने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 9 अप्रैल 1997 को केंद्र सरकार को एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया। केंद्र सरकार ने 1998 में कावेरी जल (1991 के अंतरिम आदेशों और उसके बाद के सभी न्यायाधिकरण आदेशों का कार्यान्वयन) योजना अधिसूचित की।

इस योजना में कावेरी जल प्राधिकरण और निगरानी समिति शामिल है। कावेरी नदी प्राधिकरण के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं और बेसिन राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य होते हैं। जल संसाधन मंत्रालय के सचिव इस निकाय के सचिव के रूप में कार्य करते हैं।

मामले की स्थिति को देखते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने कावेरी और म्हादेई जैसे अंतर-राज्य नदी विवादों पर चर्चा के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई।

म्हादेई नदी के जल बंटवारे का विवाद कर्नाटक और गोवा सरकारों के बीच भी इसी तरह का है।

हालाँकि केंद्र सरकार ने 2020 में एक गजट अधिसूचना जारी कर कर्नाटक को म्हादेई नदी से 13.42 टीएमसीएफटी पानी लेने की अनुमति दी थी, जिसमें से आठ टीएमसीएफटी बिजली उत्पादन के लिए है, स्थिति काफी हद तक अधर में है और यह विवाद अभी जारी है।

--आईएएनएस

एकेजे

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