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दिल्ली हाईकोर्ट ने तकनीक में लचीलेपन का हवाला देते हुए आपराधिक मुकदमों में वर्चुअल पेशी को प्रोत्साहित किया

प्रकाशित 09/09/2023, 12:03 am
दिल्ली हाईकोर्ट ने तकनीक में लचीलेपन का हवाला देते हुए आपराधिक मुकदमों में वर्चुअल पेशी को प्रोत्साहित किया

नई दिल्ली, 8 सितंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने आधुनिक तकनीक को अपनाने और आपराधिक मुकदमों में आभासी उपस्थिति की अनुमति देने के महत्व पर गौर किया है, बशर्ते ऐसी कार्यवाही मुकदमे की निष्पक्षता या अखंडता से समझौता न करें।न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि अदालतों को आपराधिक मुकदमों में भाग लेने के लिए आरोपी व्यक्तियों द्वारा किए गए अनुरोधों पर विचार करने में लचीला होना चाहिए, क्‍योंकि तभी मुकदमे की निष्पक्षता को खतरे में डाले बिना प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाा जा सकता है।

न्यायाधीश दुष्‍कर्म के आरोप का सामना कर रहे एक 75 वर्षीय व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। उन्होंने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उन्हें अपने स्वास्थ्य की स्थिति के आधार पर कार्यवाही में शारीरिक रूप से या वर्चुअल पेश होने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने उनसे वर्चुअली पेश होने पर सहायक चिकित्सा दस्तावेज भी उपलब्ध कराने को कहा।

न्यायमूर्ति स्वर्णकांता ने अभियुक्तों के अधिकारों और कानूनी प्रक्रिया की व्यावहारिकताओं के बीच संतुलन की जरूरत जोर देते हुए कहा : "ऐसे मामलों में, जहां अदालत के सामने पेश होना और वर्चुअल मोड के माध्यम से आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही में शामिल होना ईमानदारी से समझौता नहीं करता है या मुकदमे की निष्पक्षता के लिए अदालतों को आधुनिक तकनीक को अपनाने और आभासी उपस्थिति की अनुमति देने में लचीला होना चाहिए।"

अभियुक्त ने तर्क दिया कि उसकी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य स्थितियों के कारण उसके लिए हर सुनवाई में शारीरिक रूप से पेश होना अव्यावहारिक था।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि प्रत्येक आभासी उपस्थिति पर एक नए मेडिकल प्रमाणपत्र की जरूरत दिल्ली उच्च न्यायालय और जिला अदालतों पर लागू नियमों और विनियमों के विपरीत है।

न्यायमूर्ति ने जून में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक कार्यालय आदेश का उल्लेख किया, जिसने पार्टियों या उनके वकील को पूर्व अनुरोध के बिना हाइब्रिड या वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग मोड के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति दी थी। यह आदेश विशेष रूप से यौन अपराधों से जुड़े मामलों पर लागू होता है।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यह आदेश भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत आरोपों का सामना कर रहे अभियुक्तों पर लागू होता है। इसने स्पष्ट किया कि अदालतें अभी भी पार्टियों या उनके वकील को यदि आवश्यक हो तो शारीरिक रूप से उपस्थित होने का निर्देश दे सकती हैं और ऐसे निर्देशों के लिए कारण बता सकती हैं।

न्यायमूर्ति स्वर्णकांता ने बुजुर्ग आरोपी को राहत देते हुए कहा कि जब त्वरित सुनवाई के लिए आरोपी की भौतिक उपस्थिति आवश्यक नहीं है तो अदालतें विवेक का प्रयोग कर सकती हैं।

अदालत ने आरोपी की भौतिक या आभासी उपस्थिति के संबंध में दिए गए आदेश के निर्देशों को रद्द कर दिया और आरोपी को ट्रायल कोर्ट के समक्ष हर सुनवाई की तारीख पर वर्चुअल पेशी होने का निर्देश दिया, जिसमें उसके वकील भी भौतिक रूप से मौजूद रहे।

अभियुक्त को अपरिहार्य परिस्थितियों को छोड़कर स्थगन की मांग नहीं करने और हर सुनवाई के लिए चिकित्सा प्रमाणपत्र प्रदान नहीं करने के लिए कहा गया था।

--आईएएनएस

एसजीके

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