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छह हजार साल पुराने रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में नवरात्रि साधना के लिए देशभर से पहुंचे उपासक

प्रकाशित 15/10/2023, 04:48 pm
छह हजार साल पुराने रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में नवरात्रि साधना के लिए देशभर से पहुंचे उपासक

रांची, 15 अक्टूबर (आईएएनएस)। जंगलों, पहाड़ियों और नदियों से घिरा क्षेत्र, जगह-जगह साधना करते लोग, मंत्रोच्चार से गूंजता वातावरण, हवन कुंडों से उठती ज्वाला। यह रजरप्पा है। यहां है करीब छह हजार साल पुराना बताया जाने वाला मां छिन्नमस्तिका का मंदिर। पौराणिक आख्यानों के साथ-साथ साधकों-तपस्वियों की मान्यता है कि छिन्नमस्तिका का यह धाम असम के कामरूप कामाख्या के बाद दूसरे सबसे जागृत शक्तिपीठ है।हर साल की तरह इस बार भी शारदीय नवरात्र पर तप-साधना के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से भक्तों, तंत्र साधकों और अघोरियों का जुटान हुआ है। रांची से करीब 85 किलोमीटर दूर रजरप्पा में हर नवरात्रि और अमावस्या की तिथि में यहां पूरे देश भर से शक्ति यानी देवी के उपासक जुटते हैं। इनमें सबसे ज्यादा तादाद झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के साधकों की होती है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार यह स्थान मेधा ऋषि की तपस्थली के रूप में जाना जाता रहा है। हालांकि उनसे जुड़ा कोई भौतिक अवशेष यहां नजर नहीं आता। यह मंदिर दामोदर नद और भैरवी नदी के संगम के किनारे त्रिकोण मंडल के योनि यंत्र पर स्थापित है, जबकि पूरा मंदिर श्रीयंत्र के आकार में है।

मंदिर के एक पुजारी शुभाशीष पंडा के अनुसार, मां छिन्नमस्तिके को पौराणिक ग्रंथों में बताए गए 10 महाविद्या में से एक माना जाता है। यह देवी का रौद्र स्वरूप है। मंदिर में उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए छिन्नमस्तिका की प्रतिमा स्थित है। कुछ साल पहले मूर्ति चोरों ने यहां मां की असली प्रतिमा को खंडित कर आभूषण चुरा लिए थे। इसके बाद यह प्रतिमा स्थापित की गई।

पुरातत्ववेत्ताओं की मानें तो पुरानी अष्टधातु की प्रतिमा 16वीं-17वीं सदी की थी, उस लिहाज से मंदिर उसके काफी बाद का बनाया हुआ प्रतीत होता है। मुख्य मंदिर में चार दरवाजे हैं और मुख्य दरवाजा पूरब की ओर है। शिलाखंड में देवी की सिर कटी प्रतिमा उत्कीर्ण है। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। बाल खुले हैं और जिह्वा बाहर निकली हुई है। आभूषणों से सजी मां नग्नावस्था में कामदेव और रति के ऊपर खड़ी हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना कटा मस्तक लिए हैं। इनके दोनों ओर मां की दो सखियां डाकिनी और वर्णिनी खड़ी हैं। देवी के कटे गले से निकल रही रक्त की धाराओं में से एक-एक तीनों के मुख में जा रही है। मंदिर के गुम्बद की शिल्प कला असम के कामाख्या मंदिर के शिल्प से मिलती है।

मंदिर के मुख्य द्वार से निकलकर मंदिर से नीचे उतरते ही दाहिनी ओर बलि स्थान है, जबकि बाईं और नारियल बलि का स्थान है। इन दोनों बलि स्थानों के बीच में मनौतियां मांगने के लिए लोग रक्षासूत्र में पत्थर बांधकर पेड़ व त्रिशूल में लटकाते हैं। मनौतियां पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां जिन दो नदियों का संगम है, उसमें दामोदर को नद (नदी का पुरुष स्वरूप) और भैरवी को नदी माना जाता है। यहां दामोदर और भैरवी को क्रमशः काम और रति का प्रतीक माना गया है। संगम स्थल में दामोदर नदी के ऊपर भैरवी नदी गिरती है।

कहते हैं कि यही विशिष्टता इस स्थल को तंत्र-मंत्र साधना के लिए सबसे जाग्रत बनाती है। यहां दो गर्म जल कुंड हैं, जिनका पानी गर्म है और मान्यता है कि यहां स्नान करने से चर्म रोग से मुक्ति मिल जाती है। रजरप्पा में छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा, महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबा धाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं। 10 महाविद्याओं का मंदिर अष्ट मंदिर के नाम से विख्यात है। यहां काली, तारा, बगलामुखी, भुवनेश्वरी, भैरवी, षोडसी, छिन्नमस्ता, धूमावती, मातंगी और कमला की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

सफेद संगमरमर से कमल के आकार का बना दुर्गा मंदिर अपनी भव्यता के कारण लोटस टेंपल के नाम से जाना जाता है। यहां देवी दुर्गा के अपराजिता स्वरूप की पूजा होती है। विराट मंदिर में कृष्ण के विराट रूप की पूजा होती है। यह प्रतिमा 25 फीट की है। इन दोनों मंदिर के बीच लक्ष्मी की आठ प्रतिमाएं- ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, विजया लक्ष्मी, वीरा लक्ष्मी व जया लक्ष्मी स्थापित हैं।

नवरात्र पर साधना में जुटे उपासकों के अनुसार, यहां की गई साधना निष्फल नहीं होती। पिछले दिनों दक्षिण के सुपरस्टार रजनीकांत भी अपनी फिल्म जेलर के सुपरहिट होने के बाद मां छिन्नमस्तिका के दरबार में शीश नवाने पहुंचे थे।

मंदिर के एक वरिष्ठ पुजारी अजय पंडा बताते हैं कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की रजरप्पा मंदिर में गहरी आस्था रही है। वह झारखंड की राज्यपाल रहते हुए कई बार यहां आ चुकी हैं।

एक अन्य वरिष्ठ पुजारी अजय पांडा ने कहा कि उनका और रामगढ़ के अन्य लोगों का मानना है कि मुर्मू पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने वाली हैं और अपनी जीत के बाद देवता का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर का दौरा करेंगी, जिसमें उनकी गहरी आस्था है।

रजरप्पा मंदिर न्यास समिति के सचिव के अनुसार, छिन्नमस्तिके मंदिर प्रक्षेत्र में नेपाल और भूटान के अलावा जर्मनी सहित चेक गणराज्य से हर साल कई पर्यटक पहुंचते हैं।

--आईएएनएस

एसएनसी/एसकेपी

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