चेन्नई, 18 मई (आईएएनएस)। अधिकतर उद्योगों में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले सल्फ्यूरिक एसिड की आपूर्ति पिछले कुछ साल के दौरान तमिलनाडु में तेजी से घटी है, जिसका यहां के उर्वरक, रासायनिक, दवा, डिटर्जेट, पेपर और पल्प संयंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।राज्य में सल्फरिक एसिड की आपूर्ति में आयी कमी की मुख्य वजह स्टरलाइट कॉपर फैक्ट्री का बंद होना है। इसके कारण तमिलनाडु में कई उद्योगों पर ताले लग गये, कई को उत्पादन घटना पड़ा और कुछ को अस्तित्व बचाये रखने के लिये महंगे विकल्पों पर निर्भर होना पड़ा।
सल्फ्यूरिक एसिड तांबे के निर्माण का उपोत्पाद (बाइ प्रोडक्ट)है। स्टरलाइट कॉपर के बंद होने से पहले इसकी तूतूकुडी इकाई सल्फ्यूरिक एसिड की मुख्य आपूर्तिकर्ता हुआ करती थी।
स्टरलाइट कॉपर हर साल 10 लाख टन सल्फ्यूरिक एसिड का उत्पादन करती था और देश के कुल सल्फ्यूरिक एसिड उत्पादन में इसका योगदान 8.3 प्रतिशत था। तमिलनाडु के सल्फ्यूरिक एसिड के बाजार में इसकी हिस्सेदारी 95 प्रतिशत थी और यह दक्षिण भारत के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में 27 ग्राहकों को एसिड की आपूर्ति करता था।
चेन्नई इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के पूर्व सचिव एवं स्वतंत्र सलाहकारएन एस वेंकटरमन ने कहा,तमिलनाडु में आपूर्ति की कमी के कारण सल्फ्यूरिक एसिड के दाम भी आसमान छूने लगे हैं। पहले यह छह से सात रुपये प्रति किलोग्राम था और अब यह 20 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है। अब उद्योगों को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर होना पड़ रहा है।
तमिलनाडु में तीन अन्य संयंत्र ग्रीन स्टार फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, कोरोमंडल एंड आंध्रा शुगर सल्फ्यूरिक एसिड का उत्पादन कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद उद्योगों को आयात पर निर्भर होना पड़ रहा है। वेंकटरमन ने कहा कि इन तीनों संयंत्रों द्वारा उत्पादित अधिकांश एसिड कैप्टिव खपत के लिये है, जिस वजह से अन्य उद्योगों को दूसरे देशों से आयातित एसिड पर निर्भर होना पड़ता है।
साल 2017-18 में 9.46 लाख मीट्रिक टन सल्फ्यूरिक एसिड का आयात होता था लेकिन साल 2021-22 तक यह करीब 51 प्रतिशत बढ़कर 19.21 लाख मीट्रिक टन हो गया।
इस अवधि में इसके दाम में भी काफी तेजी दर्ज की गई। अप्रैल 2018 में सल्फ्यूरिक एसिड 11 हजार रुपये प्रति मीट्रिक टन था, जो अप्रैल 2022 तक 33 प्रतिशत बढ़कर 16,400 रुपये प्रति मीट्रिक टन हो गया।
आने वाले दिनों में सल्फ्यूरिक एसिड की आपूर्ति के लिये आयात पर निर्भरता और अधिक बढ़ने ही वाली है। भारत में दक्षिण कोरिया, जापान और चीन से इसका आयात किया जाता है।
उद्योगों के लिये दोहरी माह यह है कि उन्हें सल्फ्यूरिक एसिड का कोई अच्छा विकल्प नहीं उपलब्ध है और इसी वजह से अधिकतर उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति के लिये मजबूरन सल्फर बर्निग संयंत्र में निवेश के लिये बाध्य होना पड़ रहा है। मौजूदा और नये उद्योगों की एसिड मांग बढ़ने से आपूर्ति और अधिक दबाव में आयेगी।
वेंकटरमन ने कहा कि सल्फ्यूरिक एसिड की मांग में छह से सात प्रतिशत तक की वार्षिक तेजी आने की उम्मीद है।
तमिलनाडु आधारित अमृता केमिकल्स को 31 मई से अपना कामकाज बंद करना पड़ रहा है। यह एक समय में देश के मुख्य निर्यातकों में शामिल थी। यह कंपनी सोडियम सिलिका फ्लूओराइड केमिकल और पोटाशियम सिलिका फ्लूओराइड का निर्यात करती थी। इसके उत्पाद अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, जापान, दक्षिण कोरिया और लातिन अमेरिका में निर्यात किये जाते थे।
इस कंपनी के बंद होने का मुख्य कारण यह है कि अब यह किफायती दामों में तमिलनाडु में सल्फ्यूरिक एसिड और अन्य कच्चे माल की खरीद नहीं कर पा रही है। कंपनी ने अपने आप को बचाने के लिये ओडिशा आधारित पारादीप फॉस्फेट से जरूरी कच्चा माल मंगाने की भी कोशिश की लेकिन यह कोशिश नाकाम साबित हुई।
अमृता केमिकल्स के प्रबंध निदेशक गोपाल ने बताया कि पारादीप फॉस्फेट से जरूरी कच्चा मंगाने की कोशिश गैरलाभकारी साबित हुई और हमें इसी कारण कंपनी बंद करने के लिये मजबूर होना पड़ा है।
उन्होंने कहा कि डीजल के आसमान छूते दाम और ओडिशा से यहां तक की 3,600 किलोमीटर की यात्रा तथा अन्य संबंधित खर्चे कंपनी के संचालन को घाटे में लेकर चले गये। स्टरलाइट कॉपर के बंद होने से पूरा बाजार तबाह हो गया और अमृता केमिकल्स अपने मौजूदा ऑर्डर को भी पूरा नहीं कर पा रहा।
कंपनी को इसके कारण अपने प्रतिद्वंद्वियों को अपने ऑर्डर आउटसोर्स करने पड़े और कई मामलों में डिलीवरी न करने के कारण भारी जुर्माना चुकाना पड़ा।
--आईएएनएस
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