नयी दिल्ली , 18 मई (आईएएनएस)। देश में तेल की खली का निर्यात अप्रैल में 10 फीसदी बढ़कर 3,33,972 टन पर पहुंच गया, जबकि अप्रैल 2021 में 3,03,705 टन निर्यात हुआ था। खली का इस्तेमाल मवेशियों के चारे के रूप में किया जाता है।सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन द्वारा बुधवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, कनोला (रेपसीड) की खली के निर्यात में आये जबरदस्त उछाल के दम पर खली निर्यात के आंकड़ों में बढ़त दर्ज की गई है।
मार्च 2022 में कनोला की 93,984 टन खली का निर्यात किया गया था, लेकिन अप्रैल में यह आंकड़ा तेजी से बढ़कर 2,29,207 टन पर पहुंच गया।
एसोसिएशन के अनुसार, अप्रैल में दक्षिण कोरिया को 1,42,208 टन, वियतनाम को 62,979 टन, थाईलैंड को 41,992 टन , बंगलादेश को 33,422 टन तथा ताइवान को 13,191 टन तेल की खली निर्यात की गई।
खली के निर्यात के मामले में 2021-22 अच्छा नहीं रहा था। साल 2020-21 में देश से 36.8 लाख टन खली निर्यात की गई थी लेकिन आलोच्य साल में यह घटकर 23.8 लाख टन पर आ गई।
निर्यात घटने से खली से होने वाली आय भी घट गई। साल 2020-21 में 8,900 करोड़ रुपये की खली का निर्यात किया गया था लेकिन साल 2021-22 में यह 37 प्रतिशत घटकर 5,600 करोड़ रुपये पर आ गई।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान भी खली निर्यात सुस्त रहने की आशंका है। एसोसिएशन ने कहा कि देश में सोयाबीन की घरेलू स्तर पर कीमत काफी अधिक है, जिसके कारण मूल्य के आधार पर भारत सोयाबीन की खली के निर्यात बाजार में प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाया है।
एसोसिएशन ने बताया कि भारत में सोयाबीन की खली अभी 730 डॉलर बोली जा रही है जबकि अर्जेटीना ने 510 डॉलर और ब्राजील ने 505 डॉलर का दाम बोला है।
हालांकि, अधिक मात्रा में पेराई के कारण कनोला की खली के निर्यात में तेजी आ सकती है।
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