मॉस्को, 23 मई (आईएएनएस)। रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनी Rosneft (MCX:ROSN) ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी पर सोवियत संघ की जीत के उपलक्ष्य में मनाये जाने वाले 77वें स्मृति दिवस समारोह में हिस्सा लिया। रूस में द्वितीय विश्व युद्ध को ग्रेट पैट्रियोटिक वॉर के रूप में जाना जाता है और नौ मई को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कंपनी ने वॉर हीरोज की स्मृति में मनाये जाने समारोह में उन तेलकर्मियों को याद किया, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के समय तेल का उत्पादन करने और उसका शोधन करने में बहुमूल्य योगदान दिया। उन्हीें तेलकर्मियों की बदौलत युद्ध के बाद तेल उद्योग पटरी पर आया।
ऐसा ही एक संयंत्र सिजरान तेलशोधक संयंत्र रहा। दस लाख टन की क्षमता वाले एक तेल शोधक संयंत्र की सिजरान में स्थापना करने का निर्णय मार्च 1939 में लिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण संयंत्र निर्माण के कार्य में काफी तेजी लाई गई।
युद्धरत सोवियत संघ को उस वक्त पेट्रोल और रक्षा संबंधी संयंत्रों को ईंधन की जरूरत थी। साल 1942 में इस संयंत्र में काम शुरू हुआ। इस संयंत्र के निर्माण का कार्य जो तीन साल में पूरा होना था, उसे मात्र दस माह में पूरा किया गया। साल 1942 में 22 जुलाई को इस संयंत्र में पहला उत्पादन हुआ ,जिसकी खेप स्टालिनग्राद भेजी जानी थी। पेट्रोल को विशेष रूप से माल की ढुलाई के लिए बनाये गई रेलवे लाइन के जरिये स्तालिनग्राद भेजा गया।
विजय दिवस के उपलक्ष्य में मनाये जाने वाले समारोहों के दौरान सिजरान संयंत्र के तेलकर्मी गार्डन ऑफ मेमोरी अभियान में शामिल हुए। इन्होंने सिजरान संयंत्र के 80 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में लिंडेन के 80 पौधे रोपे।
इसी तरह तुआप्से संयंत्र ने भी मोर्चे पर तैनात सैनिकों की काफी मदद की। दक्षिण रूस में निर्मित यह संयंत्र 1929 से संचालित है। यह सिंगल टेक्नोलॉजिकल चेन था जो तेल की डिलीवरी, तेल शोधन और रेल तथा समुद्र के जरिये घरेलू और विदेशी उपभोक्ताओं के लिए पेट्रोलियम उत्पाद की आपूर्ति करता था।
साल 1941 की गर्मियों ने ने लेकिन पूरे माहौल को ही बदल दिया। जर्मनी के हमले के बाद इस संयंत्र को सैन्य जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य के साथ पुनर्निमित किया गया।
लगातार हो रही भारी बमबारी के बाद भी तेलशोधक संयंत्र मोर्चे और घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए काम करते रहे। कस्र्क के युद्ध के दौरान तुआप्से का तेल संयंत्र मोर्चे और घरेलू स्तर पर आपूर्ति करने वाला एकमात्र संयंत्र रह गया था। तुआप्से में काम करने वाले 100 से अधिक कर्मी मोर्चे पर चले गये और उनमें से करीब आधे लोग दुश्मनों से लोहा लेते शहीद हो गये।
आज के समय में , युद्ध स्मारक के ग्रेनाइट स्लैब पर जिन शहीदों के नाम उकेरे गये हैं, उनके वंशज इस संयंत्र में काम कर रहे हैं।
रोजनेफ्ट और उसका हर कर्मचारी द्वितीय विश्वयुद्ध की यादों को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। फासिस्टो के खिलाफ लड़ाई में सोवियत संघ के लोगों के संघर्ष का सम्मान करने के लिए कंपनी और उसके कर्मचारी प्रतिबद्ध हैं।
--आईएएनएस
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