लखनऊ, 21 अगस्त (आईएएनएस)। मुगल काल में काफी प्रचलित रहा हिन्द शमामा इत्र अब भी अपनी सुगंध बिखेर रहा है। यह एक ऐसा इत्र है, जिसे न केवल लगाया जा सकता है, बल्कि खाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इतना ही नहीं, यह औषधीय गुणों से भरपूर है, क्योंकि इसे बनाने में 36 जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है।इस खास इत्र को मेसर्स कन्नौज अतर्स के प्रबंधक पवन त्रिवेदी ने हिंद शमामा नाम से लांच किया। उन्होंने बताया कि यह अद्भुद इत्र है। इसमें गुणों की खान है। इसे खास हर्बल तरीके से बनाया जाता है। इसको देश के विभिन्न राज्यों की जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है। किसी फ्लेवर को बनाने में बहुत उपयोगी है। पेय पदार्थों, जर्दा आदि में इसका उपयोग होता है।
इत्र को बनाने में जम्मू कश्मीर के केसर संग जटामांसी, हिमाचल प्रदेश का कपूर कचरी संग देवदार की लकड़ी, राजस्थान की मिट्टी, गुजरात के कौड़ी लोबान, महाराष्ट्र के पचौली तेल, कर्नाटक के चंदन की लकड़ी, केरल का जायफल, इलायची, तमिलनाडु की लौंग, आंध्र प्रदेश के चंपा के फूल, उड़ीसा का केवड़ा, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल का नागरमोथा, असम का पचौली तेल और सुगंधमंत्री जाटमांसी आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा कई अन्य प्रदेश की जड़ी बूटियों का इस्तेमाल हिंद शमामा को बनाने में किया गया है।
उन्होंने बताया कि हिन्द शमामा को ब्रांड का पंजीकरण करवाया जाएगा। हलांकि कन्नौज के इत्र को भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) पहले से ही मिल रखा है। इसके साथ ही इसे पेटेंट कराने का प्रयास करेंगे।
इत्र कारोबारियों ने बताया कि शमामा भी दूसरे इत्र की तरह फूलों से बनाया जाता है, लेकिन इसमें कई जड़ी-बूटियां मिलाईं जातीं हैं, जिससे इसकी खुशबू गहरी हो जाती है, जो कपड़ों पर कई दिन तक रहती है। शमामा एक फारसी शब्द है, जिसका हिंदी में अर्थ होता है अच्छी सुगंध। शमामा प्राकृतिक गुणों से भरपूर होता है, इसे अल्कोहल मुक्त रखा जाता है। यह पूरे देश की सुगंध का प्रतिनिधित्व करता है।
केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के प्रधान वैज्ञानिक रमेश श्रीवास्तव ने बताया कि शमामा इत्र का चलन मुगल काल से है। राजा महाराजा ने भी इसका उपयोग किया है। उन्होंने बताया कि इस इत्र को बनाने में ज्यादातर मसाले वाली जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। इत्र को तैयार करने में सबसे पहले एक डेग में सारी जड़ी बूटियों के मिश्रण को डालकर चंदन के तेल में पकाया जाता है। जिससे इसमें सभी का अर्क आ जाये। यह बिना अल्कोहल के बनता है। यह पूर्णतया हर्बल होता है। इस कारण इसका प्रयोग गल्फ देशों में भी होता है। उन्होंने बताया कि फ्लावर एंड फ्रेगरेंस डेवलपमेंट सेंटर कन्नौज में जब तैनात था, तब वहां बहुत बरीकी इन गतिविधियों से रूबरू हुआ हूं।
वैज्ञानिक रमेश श्रीवास्तव ने बताया कि यह जड़ी बूटी मसालों के प्रयोग के कारण बच्चों के लिए काफी कारगर है। बच्चों को सर्दी और जुकाम होने या नाक बंद होने पर अगर सीने में एसे रख देते हैं तो काफी आराम मिलता है। इसमें जो जड़ी बूटियों का मिश्रण है वह नोजल सिस्टम को ठीक रखता है। यह व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।
कई इत्र तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें बनाने के लिए खास मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल किया जाता है। शमामा सबसे लंबे समय तक चलने वाले अतर इत्र में से एक है। यह संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर आदि खाड़ी देशों में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। यह इत्र खासकर वर्ष के अधिकांश समय ठंडे वातावरण में रहने वाले लोगों के लिए काफी लाभकारी होगी क्योंकि इसके इस्तेमाल से सर्दी, खांसी की समस्या दूर होती है। इसकी महक करीब 12 घंटे तक रहती है।
--आईएएनएस
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