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अप्रैल-नवंबर में भारत का राजकोषीय घाटा 8.47 लाख करोड़, ये चालू वित्त वर्ष के लक्ष्य का 52.5 प्रतिशत

प्रकाशित 01/01/2025, 04:47 pm
अप्रैल-नवंबर में भारत का राजकोषीय घाटा 8.47 लाख करोड़, ये चालू वित्त वर्ष के लक्ष्य का 52.5 प्रतिशत

नई दिल्ली, 1 जनवरी (आईएएनएस)। हाल ही में जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से नवंबर तक के पहले 8 महीनों के लिए भारत का राजकोषीय घाटा 8.47 लाख करोड़ रुपये दर्ज किया गया। जो वित्त वर्ष के लिए पूरे साल के अनुमान लक्ष्य का 52.5 प्रतिशत है।

यह एक मजबूत व्यापक आर्थिक वित्तीय स्थिति को दर्शाता है क्योंकि राजकोषीय घाटा पूरी तरह नियंत्रण में है और सरकार कंसोलिडेशन पाथ पर बनी हुई है।

आंकड़ों से पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों के लिए शुद्ध कर प्राप्तियां 14.43 लाख करोड़ रुपये या वार्षिक लक्ष्य का 56 प्रतिशत रहीं, जो पिछले साल की समान अवधि के 14.36 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।

आठ महीनों के लिए कुल सरकारी व्यय 27.41 लाख करोड़ रुपये रहा, जो केंद्रीय बजट में निर्धारित वार्षिक लक्ष्य का 57 प्रतिशत है। पिछले साल इसी अवधि में सरकार ने 26.52 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे।

सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को 2023-24 के 5.6 प्रतिशत से घटाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत पर लाना है। सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को 16.13 लाख करोड़ रुपये पर सीमित रखना है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा जारी लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के दौरान 1 अप्रैल से 10 नवंबर तक भारत का शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह, जिसमें कॉर्पोरेट कर और व्यक्तिगत आयकर शामिल हैं, 15.4 प्रतिशत बढ़कर 12.1 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसी तरह, बढ़ती आर्थिक गतिविधियों के कारण जीएसटी संग्रह में भी जोरदार वृद्धि हुई है।

कर संग्रह में उछाल से सरकार के खजाने में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए धन उपलब्ध होता है। साथ ही गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने के लिए भी धन जुड़ता है।

इससे राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने में भी मदद मिलती है और अर्थव्यवस्था के आर्थिक बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाता है।

कम राजकोषीय घाटे का मतलब है कि सरकार को कम उधार लेना पड़ता है जिससे बैंकिंग सिस्टम में बड़ी कंपनियों के लिए उधार लेने और निवेश करने के लिए अधिक पैसा बचता है।

इसके परिणामस्वरूप, उच्च आर्थिक विकास दर और अधिक नौकरियों का सृजन होता है।

इसके अलावा, कम राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति दर को नियंत्रित रखता है जो अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढांचे को मजबूत करता है और स्थिरता के साथ विकास सुनिश्चित करता है।

--आईएएनएस

एसकेटी/केआर

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