कोलकाता, 19 अक्टूबर (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर जिले के ताजपुर में प्रस्तावित बंदरगाह का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य में देउचा-पचामी-दीवानगंज-हरिंसिंगा (डीपीडीएच) कोयला ब्लॉक में काम शुरू हो सकता है या नहीं। राज्य सरकार के अधिकारी ने यह कहा है।बीरभूम जिले में डीपीडीएच कोयला ब्लॉक दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला ब्लॉक है जिसमें लगभग 1,198 मिलियन टन कोयला और 1,400 मिलियन टन बेसाल्ट है। अधिकारी ने कहा- अडाणी समूह डीपीडीएच कोयला ब्लॉक में निवेश करने में दिलचस्पी रखता है। पश्चिम बंगाल सरकार ने अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) लिमिटेड के पक्ष में ताजपुर बंदरगाह के लिए आशय पत्र (एलओआई) भी जारी किया है। अडाणी समूह की कंपनी को इस बंदरगाह के निर्माण के लिए कई हजार करोड़ रुपये का निवेश करना होगा। इस तरह के निवेश का औचित्य तभी होगा जब कंपनी डीपीडीएच कोयला ब्लॉक का खनन शुरू कर सकती है। इस ब्लॉक से कोयले का निर्यात ताजपुर बंदरगाह के माध्यम से किया जा सकता है।
इस सुनिश्चित कार्गो के बिना, पूर्व में किसी भी महत्वपूर्ण आयात या निर्यात की संभावना बहुत कम है जो बंदरगाह को व्यवहार्य बनाएगी। समस्या यह है कि डीपीडीएच कोयला ब्लॉक पहले ही विस्थापन को लेकर संकट में है, जिनमें से कई आदिवासी परिवार हैं।
कोयला और बेसाल्ट दोनों को निकालने के लिए विशेष उपकरण और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होगी। इसके लिए बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होगी। इस तरह का निवेश कॉरपोरेट घरानों द्वारा जमीन खाली होने के बाद ही किया जाएगा। अडाणी समूह केरल में अपने अनुभव से यह पहले से ही जानता है जहां उसने एक बंदरगाह में निवेश किया है। सरकार को वर्तमान में कोयला ब्लॉक के आसपास रहने वाले परिवारों के पुनर्वास को सुनिश्चित करना होगा। उन्हें मुआवजे का भुगतान भी करना होगा।
अनुमान है कि इस परियोजना के कारण लगभग 21,000 लोग (9,000 से अधिक आदिवासियों सहित) विस्थापित होंगे। केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार दोनों ने प्रत्येक परिवार को 10-13 लाख रुपये प्रति बीघा मुआवजे की पेशकश की है। इसके अलावा, प्रत्येक परिवार को 600 वर्ग फुट की आवासीय इकाई के साथ-साथ 5.5 लाख रुपये चल खर्च के रूप में आवंटित किया जाएगा। हालांकि, लोगों को स्थानांतरित करने की कोशिश के खिलाफ आंदोलन शुरू हो चुके हैं।
सीपीएम जैसे राजनीतिक दल भी कोयला खनन की कोशिश के खिलाफ मैदान में उतरे हैं। आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से दूसरी जगह ले जाने और उन संसाधनों का दोहन करने के सरकार के फैसले का कार्यकर्ताओं ने विरोध किया है।
--आईएएनएस
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