पटना, 23 अगस्त (आईएएनएस)। बिहार में जातीय गणना शुरू होने के पहले से ही इस पर राजनीति गर्म होती रही है। जातीय गणना को लेकर कथित तौर पर अब तक किसी को लाभ नहीं मिला है, लेकिन अब राजनीतिक दलों द्वारा इसके क्रेडिट लेने को होड़ मच गई है। सभी दल पिछड़ों और अति पिछड़े वर्ग के बीच खुद को उनका हितैषी साबित करने में एक-दूसरे को आईना दिखाने से नहीं चूक रहे हैं।
दरअसल, बिहार में कई बाधाओं के बावजूद सरकार जातीय गणना करवा रही है। इसमें कोई शक नहीं कि बिहार में जातीय गणना कराने का निर्णय एनडीए सरकार के दौरान लिया गया था। हालांकि, बाद में नीतीश कुमार के महागठबंधन में शामिल होने के बाद इस गणना का कार्य महागठबंधन सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ।
उल्लेखनीय है कि जातीय गणना की मांग को लेकर जब प्रधानमंत्री से मिलना था, तब भी सर्वदलीय कमेटी प्रधानमंत्री से मिलने गई थी, जिसमे भाजपा भी शामिल थी।
भाजपा के अध्यक्ष सम्राट चौधरी कहते हैं कि सरकार जातीय जनगणना को लेकर पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि ना तो हम इसके पक्ष में हैं और न ही हम इसके विरोध में हैं।
बिहार में भी भाजपा ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि हम बिहार में भी जातीय जनगणना का समर्थन करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि जो लोग आज हमारे खिलाफ बोल रहे हैं, उनको पहले यह मालूम होना चाहिए था कि बिहार कैबिनेट में हम लोगों ने इसका समर्थन किया था और बजट पास किया था।
उन्होंने कहा कि जो आज बोल रहे हैं वह कभी कैबिनेट में बैठते भी हैं क्या? यह लोग बाहर में सिर्फ भजन-कीर्तन करने वाले नेता हैं।
इधर, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह कहते हैं कि पटना हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में भाजपा ने अपरोक्ष रूप से लोकहित याचिका कराकर जातीय गणना को रोकने की कोशिश की।
सॉलिसिटर जनरल के सुप्रीम कोर्ट में इस पर पक्ष रखने से भाजपा खुलकर सामने आ गयी। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार स्वयं के संसाधन से प्रदेश में जातीय गणना करवा रही है। इसका मकसद आर्थिक रूप से अविकसित लोगों की पहचान कराने का है।
प्रधानमंत्री को जब वोट चाहिए होता है तो वह खुद को अतिपिछड़ा समाज से जोड़ लेते हैं मगर जब हक देने की बात आती है तो प्रधानमंत्री गरीब और अतिपिछड़ा विरोधी नीतियों पर चलने लगते हैं।
उन्होंने कहा कि जदयू इसे लेकर 'पोल खोल अभियान' चलाएगी।
इधर, राजद का भी कहना है कि जातीय गणना पूरे देश में होनी चाहिए।
--आईएएनएस
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