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चुनाव में भारत विरोधी बयानबाजी नहीं, क्‍योंकि राजनेता लंबे समय से जारी घरेलू समस्‍याओं जूझ रहे हैं

प्रकाशित 04/02/2024, 05:55 pm
चुनाव में भारत विरोधी बयानबाजी नहीं,  क्‍योंकि राजनेता लंबे समय से जारी घरेलू समस्‍याओं जूझ रहे हैं
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इस्लामाबाद, 4 फरवरी (आईएएनएस)। 8 फरवरी को पाकिस्तान के मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवारों और उस पार्टी को वोट देने के लिए कतार में खड़े होंगे, जिसे वे अगले पांच वर्षों तक देश चलाते देखना चाहते हैं।सरकार बनाने वाली किसी भी पार्टी को भारत, ईरान, अफगानिस्तान, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अपने पड़ोसियों के संबंधों के संदर्भ में कुछ बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

पाकिस्तान ने हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान और ईरान के साथ बढ़ते तनाव के कारण आतंकवाद की समस्याएं बढ़ती देखी हैं। पाकिस्तान का भारत के साथ लंबे समय से सीमा विवाद चल रहा है और चीन के साथ उसके रिश्ते तथा अमेरिका के साथ समानांतर संचार शर्तें भी देश की चिंता का हिस्सा हैं।

पिछले चुनावों में ऐसे कई मुद्दे रहे हैं, जो चुनाव अभियानों के दौरान राजनीतिक नेताओं के सार्वजनिक भाषणों का हिस्सा बनकर रह गए हैं। सीमा विवाद और कश्मीर विवाद की प्रासंगिकता में भारत का उल्लेख हमेशा हर राजनीतिक नेता के हर भाषण का हिस्सा रहा है, जिसका उपयोग जनता से समर्थन जुटाने के लिए किया जाता है।

चुनाव में राजनीतिक दल भारत का उल्लेख नहीं कर रहे हैं। उनका ध्‍यान गरीबी, मुद्रास्फीति, वृद्धि और विकास से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित है।

देश की मौजूदा परिस्थितियों में घरेलू चुनौतियां बहुत अधिक महत्व रखती हैं। देश की भावी विदेश नीति और प्रमुख क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियों के साथ उसके संबंधों को प्रस्तुत करने को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

पाकिस्तान दशकों से अफगानिस्तान में युद्ध के दौरान अमेरिकी सहायता प्राप्त करने वाला अग्रणी देश रहा है। लेक‍िन स्लामाबाद द्वारा अपनी धरती और सीमा पार आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई की कमी के कारण वाशिंगटन को इसके समर्थन पर संदेह है। इमरान खान के कार्यकाल में पाक-अमेरिका संबंधों में और अधिक कड़वाहट आ गई, क्योंकि उन्होंने अमेरिका की आलोचना की व चीन के साथ और अधिक मेलजोल बढ़ाने की कोशिश की।

बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान के चुनावी मुद्दों और प्रक्रिया के संदर्भ में बहुत नरम रुख अपनाया है, जो दिलचस्प रूप से बांग्लादेश के चुनावों पर इसके सख्‍त और मुखर रुख के विपरीत है। कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिका का नरम रुख गहरे राजनीतिक संकट से बचने के लिए है।

पाक-भारत संबंधों के संदर्भ में, यह अब एक ज्ञात तथ्य है कि परमाणु संपन्‍न दोनों पड़ोसियों के बीच दशकों से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता और तनाव ने इस क्षेत्र को अनिश्चितता के कगार पर रखा है।

2019 में सीमा पार संघर्ष के दौरान दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। हालांकि, कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि नवाज शरीफ के पाकिस्तान में अगली सरकार बनाने, और नरेंद्र मोदी के अगले कार्यकाल के लिए पद बरकरार रखने की संभावना के साथ, दोनों देशों के पास संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में काम करने की क्षमता है।

पाकिस्तान के लिए चीन महत्वपूर्ण महत्व रखता है, क्योंकि वह इस्लामाबाद का सबसे विश्वसनीय सहयोगी बन गया है। अरबों अमेरिकी डॉलर की सैन्य सहायता से लेकर, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की प्रमुख परियोजना सीपीईसी (चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) के माध्यम से अरबों डॉलर के निवेश के साथ, चीन कई तरीकों से पाकिस्तान के बचाव में रहा है।

इस तथ्य के बावजूद कि सीपीईसी की कुछ परियोजनाएं रुक गई हैं या उनकी गति धीमी हो गई है, विश्लेषकों का कहना है कि शरीफ सरकार इन परियोजनाओं को पटरी पर ला सकती है और बीजिंग के साथ सहयोग में भी तेजी ला सकती है।

पाकिस्तान में किसी भी सरकार के लिए विदेश नीति के मामले अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान चुनाव अभियान मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और विकास के प्रमुख घरेलू मामलों पर अधिक केंद्रित प्रतीत होते हैं।

--आईएएनएस

सीबीटी/

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