इस्तांबुल, 27 सितंबर (आईएएनएस)। लगभग 40 साल पहले जब मूरत उलुदाग किशोर थे, तब मध्य तुर्की की कुलु झील में इतना पानी था कि उसमें तैरना खतरनाक था।यह क्षेत्र पक्षियों की 186 प्रजातियों के लिए एक अभयारण्य हुआ करता था। अतीत की तुलना में अब केवल मुट्ठी भर पक्षी बचे हैं।
एक पूर्व किसान ने समाचार एजेंसी शिन्हुआ के बताया कि "अगर पानी नहीं है, तो जीवन नहीं है" और झील में एक छोटी सी जगह में एकत्र राजहंस और बत्तखों के एक छोटे से झुंड की ओर इशारा किया।
कुलु झील, जिसके पास उलुदाग बड़ा हुआ, कोन्या प्रांत के कुलु जिले से लगभग पांच किमी पूर्व में स्थित है। एक समय यह गुलाबी राजहंस और अफ्रीका जाने वाले अन्य प्रवासी पक्षियों का आश्रय स्थल था, लेकिन भूजल के अत्यधिक दोहन और जलवायु परिवर्तन के कारण यह पहले ही सूख चुका है।
उलुदाग ने कहा, अतीत में कुल्लू में किसान गेहूं और जौ जैसी पारंपरिक फसलें उगाते थे, लेकिन बाद में वे मक्का या चुकंदर जैसी जल-गहन फसलों की ओर रुख करने लगे, जिससे भूजल का आक्रमक उपयोग हुआ, जिससे झील को पानी देने वाली खाड़ियां धीरे-धीरे सूख गईं।
अनिश्चित भविष्य का सामना करने वाली कुलु झील अकेली नहीं है। गत 18 सितंबर को तुर्की प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले 60 वर्षों में तुर्की की 240 झीलों में से 186 पूरी तरह से सूख गई हैं, जबकि शेष झीलें सूखे और प्रदूषण के खतरे में हैं।
इसके अलावा, अधिकारियों ने कोन्या प्रांत में सैकड़ों सिंकहोल्स की सूचना दी है, जो आधारशिला को कमजोर कर रहे हैं और कृषि तथा मानव सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं।
अंकारा स्थित विद्वान और वन्यजीव कार्यकर्ता मेलिह ओज़बेक ने शिन्हुआ को बताया, "मध्य अनातोलिया और विशाल कोन्या मैदान में मुख्य मुद्दों में से एक जल-गहन फसलों की सिंचाई के लिए किसानों द्वारा खोदे गए अवैध कुओं का प्रसार है।"
ओज़बेक ने कहा, दूसरा कारण हाल के वर्षों में कृषि में बदलाव है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण और अधिक बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप अनियमित मौसम की स्थिति और सूखा पड़ा है।
उन्होंने कहा, "लोग उस चीज़ के लिए बलिदान देने को तैयार नहीं हैं जिसे वे देख नहीं सकते। आने वाले दशकों में उन्हें और अधिक पीड़ा झेलनी पड़ेगी।"
--आईएएनएस
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