बीजिंग, 25 अगस्त (आईएएनएस)। दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में 15वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन 22 से 24 अगस्त तक जोहान्सबर्ग में हुआ। जिसमें हिस्सा लेने के लिये चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अन्य नेतागण भी दक्षिण अफ़्रीका में मौजूद थे। माना जाता है कि यह कोरोना महामारी और उसके बाद के वैश्विक प्रतिबंधों के उभरने के बाद व्यक्तिगत रूप से आयोजित पहला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन है।
ब्रिक्स दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का समूह है। इस शिखर सम्मेलन में इस ब्लॉक के विस्तार से जुड़ा फैसला लिया गया है। लेकिन, ब्रिक्स की जरूरत आख़िर कब महसूस हुई, इस बात को भी समझना जरूरी हो जाता है।
दरअसल, ब्रिक्स दुनिया के पांच सबसे बड़े विकासशील देशों को एक साथ लाता है, जो वैश्विक आबादी का 41%, वैश्विक, सकल घरेलू उत्पाद का 24% और वैश्विक व्यापार का 16% प्रतिनिधित्व करते हैं। यह उभरता हुआ निवेश बाजार और वैश्विक शक्ति समूह है।
ब्रिक्स का अस्तित्व किसी संगठन के रूप में नहीं है, बल्कि यह पांच देशों के सर्वोच्च नेताओं के बीच एक वार्षिक शिखर सम्मेलन है। फोरम की अध्यक्षता बी-आर-आई-सी-एस के अनुसार, सदस्यों के बीच प्रतिवर्ष घुमाई जाती है।
पिछले दशक में ब्रिक्स सहयोग का विस्तार हुआ है और इसमें 100 से अधिक क्षेत्रीय बैठकों का वार्षिक कार्यक्रम शामिल हो गया है।
ब्रिक्स की महत्ता का हालिया उदाहरण यह है कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने बिजनेस फ़ोरम में भाग लेते हुए कहा कि “ब्रिक्स बिजनेस फोरम ने मुझे भारत के विकास पथ और 'व्यवसाय करने में आसानी' और सार्वजनिक सेवा वितरण को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों पर प्रकाश डालने का अवसर दिया।
साथ ही डिजिटल भुगतान, बुनियादी ढांचे के निर्माण, स्टार्टअप की दुनिया और अन्य क्षेत्रों में भारत की प्रगति पर जोर दिया।”
ब्रिक्स ना केवल व्यापार माध्यम से इन देशों की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहा है, बल्कि उभरते बाजारों और विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे और सतत विकास परियोजनाओं के लिए संसाधन जुटाने के उद्देश्य से न्यू डेवलपमेंट बैंक का गठन किया जो एक बहुपक्षीय विकास बैंक है। चीन का योगदान ब्रिक्स में काफ़ी अहम है। अगर हम चीन को ब्रिक्स का केंद्रीय बिंदु कहें तो कोई हर्ज नहीं है।
हमने चीनी मामलों के जानकर प्रसून शर्मा से बात की तो उन्होंने हमें बताया “ब्रिक्स ना केवल ब्रिक्स देशों के लिए बल्कि विश्व के लिए भी महत्वपूर्ण मंच है।
मुझे लगता है कि इसके कई सकारात्मक नतीजे निकलेंगे क्योंकि लगभग 40 से अधिक देशों ने ब्रिक्स की मेम्बरशिप लेने के लिए अपनी इच्छा जताई है और 23 देशों ने तो इसके लिए आवेदन भी कर दिया है।
यह कोई मामूली बात नहीं है, यह सीधे तौर पर ब्रिक्स की बढ़ती लोकप्रियता और सफलता की तरफ इशारा करता है। ब्रिक्स का डेवलपिंग बैंक हर संभव प्रयत्न करता है, जिससे विकास के काम में कोई बाधा ना आए।”
प्रसून आगे कहते हैं कि “ब्रिक्स देशों ने यह साबित कर दिखाया है कि वह विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ रहें हैं, जिसका सीधा असर यहां के लोगों के जीवन पर पड़ा है, जिसमें निरंतर सुधार देखने को मिल रहा है।
चीन ने ही ब्रिक्स की आधारशिला रखी है। वह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जो कोरोना महामारी के समय में भी स्थिर रही और जब विश्व युद्ध और महामारी के दौर से गुजर रहा है, उसने ब्रिक्स देशों का लोकल करेंसी में व्यापार करना भी अहम हो जाता है, इससे अनेक नई संभावनाएं भी जन्म लेती दिख रही हैं।”
प्रसून ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की भी तारीफ की और कहा की “कोई भी कनेक्टिविटी लोगों को आपस में जोड़ने में अहम भूमिका निभाती है, व्यापार के नए रास्ते खुलते हैं, जिससे समृद्धि आती है, यह एक सकारात्मक और अच्छा कदम है।”
(रिपोर्टर- देवेंद्र सिंह)
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
--आईएएनएस