बीजिंग, 24 सितंबर (आईएएनएस)। एशियाई खेल के 72 साल के इतिहास में यह तीसरा मौका है, जब इसे चीन आयोजित करने जा रहा है। पहली बार 1990 में चीन ने बीजिंग में एशियाई खेलों का आयोजन किया था। इसके बाद दूसरी बार साल 2010 में ग्वांगझोऊ में चीन ने आयोजित किया। चीन का हांगचो तीसरा शहर है,स जो एशियाई खेलों का आयोजन करने जा रहा है। भारत अब तक सिर्फ एक बार 1982 में ही एशियाई खेलों का आयोजन कर चुका है। इसे संयोग ही कहेंगे कि नई दिल्ली एशियाई खेलों में चीन ने नंबर वन होने का जो डंका बजाया, तब से लेकर अब तक हर बार चीन ही पदक तालिका में नंबर रहता आया है। उम्मीद है कि इस बार भी चीन अपना यह दबदबा बनाए रखेगा। इस बार के भी आयोजन में सबसे बड़ा दल भी चीन का ही शामिल होने जा रहा है। 19 सितंबर से ही फुटबॉल, वॉलीबॉल समेत कई इवेंट्स के मुकाबले जारी हैं। भारत ने इस बार एशियाई खेलों में 655 खिलाड़ियों का दल भेजा है, जो अब तक का सबसे बड़ा दल है। भारत ने पहले ही एशियन गेम्स में अपने अभियान की शुरुआत कर दी है, जिसमें पुरुष वॉलीबॉल टीम सबसे अधिक प्रभावित कर रही है। महिला क्रिकेट टीम अपने प्रदर्शन के आधार पर सेमीफाइनल में पहुंच गई है। भारत भी इस बार उम्मीद कर सकता है कि वह पहले की तुलना में ज्यादा पदक हासिल कर सकेगा।
भारत की उम्मीद भालाफेंक प्रतियोगिता के खिलाड़ी नीरज चोपड़ा समेत तीरंदाजी, बैंडमिंटन, एथलीट और पहलवान हैं। वैसे पहले एशियाई खेल से लेकर आठवें एशियाई खेल तक पदक तालिका में जापान का दबदबा रहा है, लेकिन चीन ने उसे एक बार पछाड़ा, तब से वह पीछे ही ही है। एशियाई खेलों का अपना महत्व है। कोरोना के बाद यह एशिया के स्तर पर यह पहला बड़ा खेल आयोजन है। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि कोरोना के बाद उपजी निराशा को दूर करने में यह आयोजन सफल होगा। मौजूदा विश्व व्यवस्था में राजनीति अपना काम करती रहती है। देशों के बीच आपसी खींचतान चलती रहती है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि खेलों के जरिए ना सिर्फ एक-दूसरे के खिलाड़ी नजदीक आते हैं, बल्कि अपने खिलाड़ियों की हौसलाअफजाई करने वाली जनता भी साथ आती है।
इसके साथ ही आयोजक देश की संस्कृति, वहां की अर्थव्यवस्था, परंपरा आदि के बारे में भी दुनिया जानने लगती है। जिस देश में आयोजन होता है, वहां की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। इन सबके चलते खेलों में शामिल होने वाले देश नजदीक आते हैं। माना जा सकता है कि खेलों की दुनिया की इस परिपाटी को एक बार फिर अपनाया जाएगा। इस बहाने चीन के हांगचो शहर को दुनिया जानने लगेगी। इसकी वजह से पर्यटन के मानचित्र पर यह शहर उभरेगा। जहां तक भारत की बात है तो इसकी वैश्विक उपस्थिति बहुत कुछ इसके खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर निर्भर करेगी।
भारत के खिलाड़ियों ने दबदबा बनाया तो तय है कि भारत की एक बार फिर दुनिया का ध्यान आएगा। इसके बाद वैश्विक स्तर पर भारत की पहुंच ज्यादा बढ़ेगी। इसका असर भारतीय सामानों की बिक्री पर भी पड़ेगा। वहीं चीन के उत्पादक और बाजार को भी इसका फायदा मिलेगा। इस आयोजन के जरिए एशिया के देश नजदीक तो आएंगे ही, चीन और भारत के आम लोगों के रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है।
(उमेश चतुर्वेदी)
--आईएएनएस
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