बीजिंग, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत विश्व में निस्संदेह एक महत्वपूर्ण देश है, इसलिए भारत के विकल्प पर सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित है। क्योंकि यह न केवल अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, बल्कि भारत और अन्य देशों के हितों को भी प्रभावित करेगा। भारत को विश्व को अधिक निष्पक्ष एवं तर्कसंगत दिशा में बढ़ाने के लिए सही नीति अपनानी चाहिए, क्योंकि यह भारत की दीर्घकालिक विकास से जुड़ा अहम निर्णय है। आज विश्व में प्रमुख शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा और उत्तर-दक्षिण संघर्ष दोनों मौजूद रहे हैं। प्रतिस्पर्धियों को दबाने के लिए अमेरिका ने चीनी हाई-टेक कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं। साथ ही, इसने ताइवान जलडमरूमध्य जैसे क्षेत्रों में सैन्य अभ्यास किया।
यहां तक कि अमेरिका ने भारत को भी चीन के खिलाफ किसी छोटे घेरे में शामिल करवाने की भी कोशिश की। इस उद्देश्य से अमेरिका भारत को कुछ लाभ देने का वादा करने में संकोच नहीं करता। इसी स्थिति में भारत कैसा राजनीतिक रवैया उठाएगा? क्या वह क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने के लिए यथार्थवादी नीति से अपने पड़ोसी संबंधों को संभालेगा?
हाल के वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित हुई है, इसकी जीडीपी यूनाइटेड किंगडम से भी आगे निकल गई है, और यह विश्व शक्ति बनने के लक्ष्य की ओर लगातार प्रगति कर रहा है। हाल ही में दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा वकालत किये गये "वसुधैव कुटुम्बकम" पर विश्व का ध्यान आकर्षित हुआ।
कुछ भारतीय राजनेताओं ने यह भी पेश किया कि भारत विश्वगुरु बनकर अपने मूल्यों और संस्कृति को दुनिया भर में फैलाएगा। महत्वाकांक्षा का सहारा करने के लिए स्मार्ट नीति विकल्पों की आवश्यकता भी चाहिये। दूसरी तरफ भारत में आर्थिक विकास और राष्ट्रीय शासन के संदर्भ में कुछ कमियां भी मौजूद हैं। एक सच्ची विश्व शक्ति बनने के लिए, उसे अदूरदर्शी अवसरवादी रवैया अपनाने के बजाय अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में स्पष्ट सैद्धांतिक रुख प्रदर्शित करना होगा।
वर्तमान दुनिया में यह बहुत स्पष्ट है कि कौन विकासशील दुनिया के हितों का अधिक प्रतिनिधित्व करता है और कौन अपने स्वार्थों के लिए प्रतिस्पर्धियों का स्वेच्छा से दमन कर रहा है। इस वर्ष आयोजित ब्रिक्स और एससीओ शिखर सम्मेलनों ने एकता से सहयोग को बढ़ावा देने और विशेष छोटे समूहों की स्थापना का विरोध करने पर अपना स्पष्ट रुख व्यक्त किया।
ब्रिक्स और एससीओ के एक महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में, भारत को कैसा रुख उठाना चाहिये, यह बहुत स्पष्ट है। दूसरों के बीच संघर्ष का उपयोग करने से न केवल भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान होगा, बल्कि अपने पुराने सहयोगियों के साथ काम करने का अवसर भी खो जाएगा। भारत का एशिया में अपने प्रतिस्पर्धियों को दमन करने के लिए एक रणनीतिक मोहरे के रूप में उपयोग करने के उद्देश्य में अमेरिका ने क्वाड स्थापित किया है और भारत को कुछ उच्च तकनीक उद्योगों को स्थानांतरित करने का वादा किया है।
लेकिन, नैतिक मूल्यों और आर्थिक स्थिति में मौलिक अंतर से यह निर्धारित है कि अमेरिका और भारत ईमानदार दोस्त नहीं बन सकते हैं। इसके विपरीत, चीन और भारत दोनों एशिया में विकासशील देश हैं, उनके समान ऐतिहासिक अनुभव और अवसर भी हैं। समानता और पारस्परिक सम्मान के आधार पर, चीन और भारत के पास समस्याओं का मैत्रीपूर्ण रूप से समाधान करने और सहयोगी पड़ोसी बनने की बड़ी संभावना है।
साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
--आईएएनएस