नई दिल्ली। केन्द्र सरकार ने पिछले साल के मुकाबले चालू वर्ष के दौरान धान, मोटे अनाज एवं कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी अच्छी बढ़ोत्तरी कर दी है ताकि किसानों को इसका उत्पादन बढ़ाने का अच्छा प्रोत्साहन प्राप्त हो सके। दरअसल केन्द्रीय पूल के लिए गैर बासमती संवर्ग के धान की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर विशाल मात्रा में की जाती है और इससे निर्मित चावल का उपयोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में आपूर्ति के लिए होता है।
इसके अलावा अन्य कल्याणकारी योजनाओं की जरूरतों को पूरा करने में भी इस चावल का इस्तेमाल किया जाता है।
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2022-23 के मुकाबले 2023-24 के खरीफ सीजन हेतु धान के दोनों संवर्गों में 143 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा किया गया है जिससे सामान्य श्रेणी के धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2040 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर 2183 रुपए प्रति क्विंटल तथा 'ए' ग्रेड धान का समर्थन मूल्य 2060 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर 2203 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है।
यह घोषित न्यूनतम मूल्य खरीफ एवं रबी दोनों सीजन में उत्पादित धान पर समान रूप से लागू माना जाएगा।
मोटे अनाजों के एमएसपी में 128 रुपए से लेकर 268 रुपए प्रति क्विंटल तक का इजाफा किया गया है। 2022-23 सीजन की तुलना में 2023-24 सीजन के ज्वार हाइब्रीड का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2970 रुपए प्रति क्विंटल से 210 रुपए बढ़ाकर 3180 रुपए प्रति क्विंटल, ज्वार मलदंडी का 2990 रुपए प्रति क्विंटल से 235 रुपए बढ़ाकर 3225 रुपए प्रति क्विंटल, बाजरा का 2350 रुपए प्रति क्विंटल से 150 रुपए बढ़ाकर 2500 रुपए प्रति क्विंटल, मक्का का 1962 रुपए प्रति क्विंटल से 128 रुपए बढ़ाकर 2090 रुपए प्रति क्विंटल तथा रागी का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3578 रुपए प्रति क्विंटल से 268 रुपए बढ़ाकर 3846 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है।
कपास (रूई) के समर्थन मूल्य में एक बार फिर भारी बढ़ोत्तरी की गई है। इसके तहत समीक्षाधीन वर्ष के दौरान मीडियम रेशेवाली कपास का एमएसपी 6080 रुपए प्रति क्विंटल से 540 रुपए बढ़ाकर 6620 रुपए प्रति क्विंटल तथा लम्बे रेशेवाली कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6380 रुपए प्रति क्विंटल से 640 रुपए बढ़ाकर 7020 रुपए प्रति क्विंटल नियत किया गया है। खरीफ कालीन फसलों की खेती का सीजन औपचारिक तौर पर 1 जून से आरंभ हो चुका है। पिछले दो साल से रूई का घरेलू बाजार भाव ऊंचा चल रहा है जिससे भारतीय कपास निगम को इसकी खरीफ की आवश्यकता नहीं पड़ी।