iGrain India - ब्रिसबेन । हालांकि कुछ वर्ष पूर्व की तुलना में ऑस्ट्रेलिया में अब चना का उत्पादन घटकर काफी नीचे आ गया है लेकिन फिर भी वह इसका सबसे प्रमुख निर्यातक देश बना हुआ है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि भारत दुनिया में चना का सबसे बड़ा उत्पादक देश है मगर विशाल घरेलू खपत निर्यात किया जाता है। अमरीकी कृषि विभाग (उस्डा) ने हाल की अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि ऑस्ट्रेलिया चना का सबसे प्रमुख निर्यातक देश बना हुआ है चना का सबसे प्रमुख निर्यातक देश बना हुआ है और इसके कुछ वैश्विक निर्यात में उसकी भागीदारी पिछले 10 वर्षों से करीब एक-तिहाई दर्ज की जा रही है।
यद्यपि स्वदेशी उद्योग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात संवर्धन के लिए अधिक से अधिक सूचना एकत्रित कर रहा है लेकिन साथ ही साथ वह यह भी चाहता है कि इसकी घरेलू मांग एवं खपत तेजी से बढ़े और ऑस्ट्रेलिया में अधिक से अधिक उपभोक्ता इसका उपयोग करे।
ग्रेन्स ऑस्ट्रेलिया प्लस कौंसिल (जीएपीसी) के चेयरमैन का कहना है कि अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक दलहन है। इसमें गलाइसैमिक इंडेक्स (जीआई) नीचे रहता है। फाइबर का स्तर ऊंचा रहता है और प्रोटीन का काफी ऊंचा अंश पाया जाता है। चना की लोकप्रियता बढ़ रही है।
खाद्य उत्पाद निर्माताओं द्वारा इससे नए उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है जिससे ऑस्ट्रेलिया में घरेलू खपत बढ़ने लगी है। यह एक बढ़ता हुआ बाजार है लेकिन फिलहाल इसका दायरा सीमित देखा जा रहा है।
ऑस्ट्रेलिया में वैसे तो देसी चना का ही उत्पादन मुख्य रूप से होता है लेकिन थोड़ी- बहुत मात्रा में काबुली चना का भी उत्पादन होता है। आमतौर पर काबुली चना का निर्यात कंटेनरों में किया जाता है क्योंकि आयातक उसी में इसे पसंद करते हैं।
सुपर मार्केट्स में भी काबुली चना को पैकिंग में रखा जाता है जबकि देसी चना खुले रूप में बिकता है।
वर्ष 2017 तक ऑस्ट्रेलिया के चना निर्यातकों को भारत के विशाल बाजार में निर्बाध रूप से अपना कारोबार करने में सफलता मिल रही थी और इसका वार्षिक निर्यात 1.10 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया था लेकिन उसी साल भारत सरकार ने चना के आयात पर भारी-भरकम सीमा शुल्क लगा दिया जिससे ऑस्ट्रेलिया में इसकी खेती के प्रति किसानों का उत्साह एवं आकर्षण तेजी से घटने लगा।
वर्ष 2017 में ऑस्ट्रेलिया में चना का उत्पादन उछलकर 20 लाख टन से भी कुछ नीचे आ गया है। ऑस्ट्रेलियाई चना के लिए सबसे प्रमुख बाजार अब बांग्ला देश, पाकिस्तान एवं संयुक्त अरब अमीरात है। मध्य पूर्व एशिया के कुछ अन्य देश भी इसकी खरीद करते हैं।