iGrain India - नई दिल्ली । अल नीनो मौसम चक्र के करीब चालू वर्ष के दौरान दक्षिण- पश्चिम मानसून न केवल कमजोर रहा बल्कि वर्षा के वितरण में भी भारी असमानता देखी गई। वर्ष 2018 के बाद इस बार मानसून की बारिश सबसे कम हुई।
मौसम विभाग के मुताबिक सामान्य औसत की तुलना में चालू वर्ष के दौरान 94 प्रतिशत वर्ष हुई जबकि कई इलाकों में इसका भारी अभाव देखा गया। महत्वपूर्ण समय पर बारिश की कमी से खरीफ फसलों को भारी नुकसान होने की आशंका है।
हालांकि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने अरहर (तुवर) को छोड़कर अन्य खरीफ फसलों के उत्पादन में गिरावट आने का अनुमान लगाया है लेकिन उद्योग- व्यापार क्षेत्र का कहना है कि वास्तविक गिरावट सरकारी अनुमान से कहीं ज्यादा होगी।
हालांकि वर्षा में महज 6 प्रतिशत की गिरावट आने को सामान्य माना जा रहा है लेकिन देश के कुछ महत्वपूर्ण कृषि उत्पादक राज्यों में वर्षा का वितरण असमान रहने से फसलों को जोरदार क्षति हुई।
इसमें पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भाग, कुछ पश्चिमी प्रान्त एवं दक्षिणी प्रायद्वीप शामिल हैं। मौसम विभाग के अनुसार मानसून के प्रस्थान करने के बाद जो परिदृश्य सामने आया उससे पता चलता है कि देश के कुल 717 जिलों में से 221 जिलों में वर्षा सामान्य से कम या बहुत कम हुई।
देश के कुल 36 मौसम उपखंडों में से केवल 26 उपखंड (73 प्रतिशत) में सामान्य बारिश हुई जबकि 18 प्रतिशत (सात उपखंड) में सामान्य से बहुत कम वर्षा हुई। केवल 7 प्रतिशत क्षेत्र में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई।
मानसून वर्षा के इस आसमान वितरण के कारण दलहनों, मक्का, सोयाबीन, धान एवं कपास तथा गन्ना की फसल को भारी नुकसान हुआ है लेकिन कृषि मंत्रालय ने इसके उत्पादन में कम गिरावट आंका है।
देश के जिन राज्यों / क्षेत्रों में दीर्घकालीन औसत के मुकाबले 10 से 20 प्रतिशत तक की गिरावट आई है उसमें बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल का कुछ भाग भी शामिल है जहां धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इसी तरह दलहन, तिलहन के कई महत्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्रों में भी वर्षा की कमी रही। कपास एवं गन्ना की पैदावार घट रही है।