iGrain India - नई दिल्ली । भारतीय बाजार में तुवर की आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति जटिल होने से कीमतों में तेजी-मजबूती का माहौल बना हुआ है। दरअसल अगस्त से ही भारत में अरहर (तुवर) की आवक का लीन या ऑफ सीजन आरंभ हो जाता है जो नवम्बर तक बरकरार रहता है।
दिसम्बर-जनवरी में कर्नाटक एवं महाराष्ट्र सहित अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक राज्यों में तुवर के नए माल की आपूर्ति शुरू हो जाती है। 2022-23 के सीजन में तुवर का घरेलू उत्पादन कमजोर रहा था जिसका असर इसकी कीमतों पर अब तक देखा जा रहा है।
2023-24 के सीजन में एक बार फिर तुवर का उत्पादन घटने की संभावना है जिससे विदेशों से आयात पर निर्भरता बढ़ जाएगी।
सरकार का मानना है कि वित्त वर्ष 2022-23 (अप्रैल-मार्च) के दौरान देश में 8.94 लाख टन से कुछ अधिक तुवर का आयात हुआ था जबकि 2023-24 के मौजूदा वित्त वर्ष में आयात की कुल जरूरत बढ़कर 12 लाख टन पर पहुंच जाएगी।
मोजाम्बिक से तुवर का सर्वाधिक आयात होता है मगर अब वहां इसके शिपमेंट की अनुमति देने में जान बूझकर देर की जा रही है जिससे पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान इसके दाम में 100 डॉलर (80 यूरो) प्रति टन का भारी इजाफा हो गया।
मोजाम्बिक इस हकीकत से अच्छी तरह अवगत है कि भारत को तुवर के भारी आयात की सख्त आवश्यकता है क्योंकि वहां फसल कमजोर है जबकि मांग एवं खपत में बढ़ोत्तरी हो रही है।
व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक मोजाम्बिक भारत की विवशता का नाजायज फायदा उठा रहा है जबकि वह भारत के साथ करार से भी बंधा हुआ है।
भारत सरकार इस पर अपनी चिंता व्यक्त कर चुकी है लेकिन मोजाम्बिक की तरफ से समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है। भारत सरकार चाहती है कि मोजाम्बिक से तुवर का निर्बाध निर्यात जारी रहे। मगर इसके लिए वहां आवश्यक कदम उठाने में देर हो रही है।
एक अग्रणी व्यापारिक संस्था- इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन (इपगा) के चेयरमैन के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि मोजाम्बिक भारत में तुवर आपूर्ति में कमी का गलत फायदा उठाना चाहता है और इसलिए उसके बंदरगाहों पर लगभग 200 कंटेनरों में भारत को निर्यात के लिए तुवर का जो स्टॉक पड़ा हुआ है उसके शिपमेंट की अनुमति देने में जान बूझकर लेट कर रहा है। इससे भारत में तुवर का भाव ऊंचा एवं तेज चल रहा है।