iGrain India - नई दिल्ली । भारत से गैर बासमती संवर्ग के सफेद (कच्चे) चावल के व्यापारिक निर्यात पर प्रतिबंध लगने के बाद जहां एक ओर अफ्रीका एवं एशिया के अनेक देशों की कठिनाई बढ़ गई है वहीँ थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान एवं चीन जैसे निर्यातक देशों को भारी फायदा हो रहा है।
भारतीय चावल के प्रमुख परम्परात आयातक देश अब अन्य निर्यातक देशों से काफी ऊंचे दाम पर चावल खरीदने के लिए विवश हो रहे हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि जब तक भारत सफेद चावल का निर्यात कर रहा था तब तक इसके वैश्विक बाजार मूल्य में सीमित उतार-चढ़ाव का माहौल बना हुआ था
क्योंकि भारतीय चावल सबसे सस्ते दाम पर उपलब्ध था और अन्य निर्यातक देश इसके निर्यात ऑफर मूल्य में मनमानी बढ़ोत्तरी नहीं करना चाहते थे क्योंकि इससे उसका कारोबार प्रभावित होने की आशंका थी। लेकिन निर्यात बाजार से भारत के हटते ही अन्य निर्यातक देश चावल का भाव बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हो गए।
हालांकि थाईलैंड और वियतनाम में चावल के स्टॉक की स्थिति उत्साहवर्धक नहीं है लेकिन ऊंचे वैश्विक बाजार भाव का फायदा उठाने के लिए निर्यातक एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।
थाईलैंड में तो सरकार किसानों को अपने धान का स्टॉक तीन-चार महीने तक बरकरार रखने के लिए सब्सिडी भी प्रदान कर रही है जबकि वियतनाम ने भारत से ब्राउन राइस का आयात शुरू कर दिया है। फिलीपींस को चावल के आयात की सख्त जरुरत है।
अफ्रीकी देशों में भी चावल की कमी है। आइवरी कोस्ट पहले भारत से विशाल मात्रा में कच्चे चावल का आयात करता था मगर वहां से निराश होने के बाद वह चीन की तरफ मुड़ गया।
उसने अगस्त तथा अक्टूबर में 45-45 हजार टन के साथ कुल 90 हजार टन चावल का आयात चीन से किया जो पिछले साल की पूरी अवधि के आयात 63,500 टन से भी ज्यादा है। इससे स्पष्ट पता चलता है कि अफ्रीकी देशों के चावल की कितनी सख्त जरूरत है।
अक्टूबर में चीन से कांगों को 20 हजार टन चावल का निर्यात हुआ जो जुलाई 2018 के बाद किसी एक माह का सबसे बड़ा शिपमेंट था।
अक्टूबर में ही घाना को भी 20 हजार टन चावल का निर्यात हुआ जो अगस्त के रिकॉर्ड शिपमेंट 20,500 टन से कुछ कम था। पहले से सभी अफ्रीकी देश भारत से भारी मात्रा में कच्चे चावल का आयात करते थे।