iGrain India - नई दिल्ली । चूंकि खरीफ कालीन फसलों और खासकर धान, गन्ना तथा कपास आदि की कटाई-तैयारी में लेट होने से अनेक क्षेत्रों में रबी कालीन फसलों और खासकर गेहूं की बिजाई देर से शुरू हुई है इसलिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अधीनस्थ निकाय करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने गेहूं की कुछ खास किस्मों एवं प्रजातियों की खेती पर विशेष ध्यान दिये जाने का सुझाव किसानों को दिया है।
संस्थान ने कहा है कि जिन राज्यों के लिए गेहूं की जो किस्में उपयुक्त है वहां उसकी ही बोआई की जानी चाहिए और इसकी बिजाई प्रक्रिया 25 दिसम्बर तक पूरी हो जानी चाहिए।
सरकार ने इस बार 60 प्रतिशत उत्पादन क्षेत्र में गेहूं की ऐसी उन्नत एवं विकस्ति किस्मों की बिजाई का लक्ष्य रखा है जिसमें प्रतिकूल मौसम को बर्दाश्त करने की अच्छी क्षमता मौजूद है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं की बोआई के लिए सामान्य अवधि समाप्त हो चुकी है इसलिए केवल लेट वैरायटी की ही बिजाई की जा सकती है। ये किस्में कम समय में पककर तैयार होती हैं क्योंकि इसकी परिपक्वता अवधि छोटी होती है। लेकिन साथ ही साथ इस गेहूं की औसत उपज दर भी कम रहती है।
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस गेहूं की बिजाई का आदर्श समय 21 दिसम्बर तक रहता है इसलिए किसानों को अधिक से अधिक 25 दिसम्बर तक गेहूं की सभी किस्मों की बिजाई पूरी कर लेनी चाहिए ताकि उसे परिपक्व होने के लिए पर्याप्त समय मिल सके और पौधों में दाना लगने तथा भरने के दौरान ऊंचे तापमान के प्रभाव को घटाने में सहायता हासिल हो सके।
संस्थान द्वारा जारी एडवायजरी में कहा गया है कि देश के विभिन्न उत्पादक राज्यों में बोआई के लिए गेहूं की अलग-अलग किस्मों की सिफारिश की गई है। इसके तहत पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के कुछ भागों के लिए गेहूं की खास किस्मों की खेती का सुझाव भी शामिल है।
इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा झारखंड के लिए खास किस्मों और मध्य प्रदेश, गुजरात तथा राजस्थान के शेष भागों के लिए अलग किस्मों की गेहूं की बिजाई की सिफारिश की गई है।