iGrain India - कोच्चि । भारत का मसाला क्षेत्र पिछले दो दशकों से उल्लेखनीय विकास दर्ज कर रहा है। मसालों के उत्पादन में प्रति वर्ष 7 प्रतिशत की दर से इजाफा हो रहा है जबकि इसके बिजाई क्षेत्र में 4.4 प्रतिशत की दर से वार्षिक वृद्धि हो रही है।
कोझिकोड स्थित भारतीय मसाला अनुसन्धान संस्थान, ऑल इंडिया कोओर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन स्पाइसेज तथा सिरसी स्थित बागवानी अनुसंधान एवं विस्तार केन्द्र के विशेषज्ञों द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 से 2020-21 के दौरान मसालों की औसत उपज दर भी 1.63 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2.50 टन प्रति हेक्टेयर पर पहुंच गई।
रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 के दौरान देश में मसालों का कुल क्षेत्रफल 43.80 लाख हेक्टेयर रहा जबकि इसक कुल उत्पादन 111.20 लाख टन पर पहुंच गया। कर्नाटक में मसालों का रकबा 4.27 लाख हेक्टेयर तथा उत्पादन 9.60 लाख टन दर्ज किया गया।
जिन मसालों का सर्वाधिक उत्पादन एवं निर्यात होता है उसमें लालमिर्च, कालीमिर्च, सौंठ (अदरक), हल्दी, धनिया, जीरा, इलायची एवं जायफल-जावित्री आदि शामिल हैं। मसालों के कुल घरेलू उत्पादन में लालमिर्च, सौंठ, हल्दी, धनिया एवं जीरा का योगदान करीब 76 प्रतिशत रहा।
सुपारी एवं मसाला विकास निदेशालय, कोझिकोड के आंकड़ों तथा भारतीय मसाला बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 के सीजन के दौरान देश से मसालों का निर्यात करीब 30 प्रतिशत उछलकर सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया। इसी तरह 2021-22 के सीजन में भारत से लगभग 15 लाख टन मसालों का शानदार निर्यात हुआ जिससे 4.102 अरब डॉलर की आमदनी प्राप्त हुई।
इस तरह मसालों के निर्यात में मात्रा की दृष्टि से 43 प्रतिशत एवं आय की दृष्टि से 47 प्रतिशत की जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई। पिछले महीने मसालों की चार नई प्रजातियों की पहचान की गई जिसके उत्पादन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
इसमें गुजरात अजवायन-3, हिसार कलौंजी- 12, आई आई एस आर अमृत-मैंगो अदरक तथा कामाख्य 1-कालीमिर्च शामिल है।