iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार द्वारा पीली मटर के शुल्क मुक्त एवं नियंत्रण मुक्त आयात की अनुमति दिए जाने से जहां एक ओर रूस एवं कनाडा जैसे निर्यातक देशों में इसका भाव एकाएक तेजी से उछल गया है वहीँ दूसरी ओर चना के घरेलू बाजार भाव पर दबाव बढ़ने की आशंका भी उत्पन्न हो गई है।
उद्योग व्यापार क्षेत्र के समीक्षकों का कहना है कि पीली मटर का निर्यात ऑफर मूल्य रूस में 320-330 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 400-410 डॉलर प्रति टन एवं कनाडा में 425 डॉलर से उछलकर 500-525 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है। भारत में मुख्यत: इन्हीं दोनों देशों से पीली मटर का आयात होने की संभावना है।
दलहनों के अग्रणी व्यापारी विवेक अग्रवाल, जे एल वी एग्रो, पुणे नें भी पिछले दिन कहा था कि पीली मटर के नियंत्रण मुक्त आयात की अनुमति देने का निर्णय तो सही और स्वागत योग्य है लेकिन इस पर कुछ शुल्क लगाया जाना चाहिए था ताकि आयातित माल का भाव घरेलू मटर एवं चना से कुछ ऊपर रह सके। मालूम हो कि पहले मटर पर 50 प्रतिशत का बुनियादी आयात शुल्क लगा हुआ था जो अब पूरी तरह समाप्त हो गया है।
सरकार ने मटर के आयात को खोलने का निर्णय ऐसे समय में लिया है जब घरेलू प्रभाग में इसकी बिजाई प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी है। इसके साथ-साथ आयात की अनुमति 31 मार्च 2024 तक के लिए दी गई है ताकि किसानों को नए माल की बिक्री ऊंचे दाम पर करने में परेशानी न हो।
लेकिन यदि दिसम्बर से मार्च के दौरान भारी मात्रा में सस्ती मटर का आयात हुआ तो अप्रैल-मई तक इसका प्रभाव बरकरार रह सकता है। चूंकि मटर के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं होता इसलिए आमतौर पर इसकी सरकारी खरीद भी नहीं होती है।
व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक मार्च 2024 के अंत तक देश में 3 से 5 लाख टन तक पीली मटर का आयात हो सकता है जिससे घरेलू प्रभाग में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ेगी और कीमतों में नरमी आएगी। इससे चना का दाम भी नरम पड़ सकता है क्योंकि इसकी मांग कुछ कमजोर पड़ जाएगी।
जिन व्यापारियों / मिलर्स ने किसानों अथवा नैफेड से ऊंचे दाम पर चना खरीदा है उसे आगे कठिनाई हो सकती है। एक व्यापारी का कहना है कि खाद्य महंगाई के साथ-साथ सरकार को अपने हितों की चिंता भी सता रही है इसलिए उसने तमाम कृषि एवं खाद्य उत्पादों के बाजार को तोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया है। इसमें चावल, गेहूं, दलहन-दाल, तेल-तिलहन एवं चीनी के साथ-साथ प्याज आदि भी शामिल है। इससे किसानों को भी नुकसान हो सकता है।