iGrain India - नई दिल्ली । पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देने के बाद केन्द्र सरकार अब गेहूं तथा चना के आयात पर लगे सीमा शुल्क को घटाने या खत्म करने पर विचार कर रही है। फिलहाल गेहूं पर 40 प्रतिशत एवं चना (देसी) पर 60 प्रतिशत का बुनियादी आयात शुल्क लागू है। उल्लेखनीय है कि गेहूं, चना और मटर- तीनों ही रबी कालीन फसलें हैं जिसकी बिजाई अभी चल रही है।
दरअसल गेहूं और चना का बिजाई क्षेत्र गत वर्ष से पीछे चल रहा है जबकि आगामी महीनों के दौरान अल नीनो मौसम चक्र का प्रभाव एवं प्रकोप रहने की संभावना है जिससे इसका उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
घरेलू प्रभाग में अनाज एवं दलहन का भाव पहले से ही काफी ऊंचे स्तर पर मौजूद है। यदि उत्पादन कमजोर पड़ने का संकेत मिला तो बाजार में कुछ और तेजी आ सकती है। इससे सरकार की चिंता बढ़ती जा रही है।
ध्यान देने की बात है कि सरकार ने पहले दावा किया था कि उसके पास गेहूं और चना का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है और वह इसकी कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के लिए बाजार में प्रभावी ढंग से हस्तक्षेप करने में सक्षम है।
यह दावा अपनी जगह सही है और वह बाजार में भारी मात्रा में गेहूं और चना उतार भी रही है मगर फिर भी इसके दाम में नरमी आने के संकेत नहीं मिल रहे हैं। सरकार की चिंता अगली फसल के लिए भी है।
खाद्य महंगाई जो नियंत्रित करने के लिए हाल के समय में सरकार द्वारा अनेक नीतिगत निर्णय लिए गए हैं लेकिन इसका ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। इसे देखते हुए सरकार अब कुछ नए मसालों एवं उत्पादों पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही है जिसमें गेहूं एवं चना पर आयात शुल्क में कटौती का उपाये भी शामिल है ताकि घरेलू बाजार में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों में नरमी लाने में सहायता मिल सके।
सरकार गेहूं की कीमतों को नीचे लाने के लिए सभी संभव उपायों पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जा रहा है। सरकार की एक चिंता यह है कि यदि मार्च तक गेहूं का भाव घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (2275 रुपए प्रति क्विंटल) से नीचे या इसके आसपास नहीं आया तो अप्रैल-मई में इसे किसानों से इसकी खरीद करने में भारी कठिनाई हो सकती है।
चना का परिदृश्य भी कुछ ऐसा ही है। अप्रैल-मई में लोकसभा का चुनाव होने वाला है और सरकार महंगाई को जोखिम लम्बे समय तक नहीं उठाना चाहती है। कभी भी कोई त्वरित या आकस्मिक निर्णय लिया जा सकता है।