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गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय कितना सही था ?

प्रकाशित 20/12/2023, 12:20 am
गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय कितना सही था ?

iGrain India - नई दिल्ली । भारत दुनिया में चावल के सबसे प्रमुख निर्यातक एवं दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चावल के वैश्विक निर्यात बाजार में भारत की भागीदारी 40 प्रतिशत से ऊपर रहती है इसलिए जब सरकार ने जुलाई 2023 में सफेद सामान्य चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में स्वाभाविक रूप से हड़कंप मच गया।

इससे पूर्व सितम्बर 2022 में 100 प्रतिशत टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था जो अभी तक बरकरार है। इसके बाद अगस्त 2023 में सेला सामान्य चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया गया और बासमती चावल के लिए 1200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (मेप) निर्धारित किया गया।

बाद में इसे घटाकर 950 डॉलर प्रति टन नियत किया गया। मई 2022 में गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई गई थी और जून 2023 से चीनी का निर्यात रोक दिया गया। गेहूं उत्पादों के निर्यात पर भी रोक लगी हुई है। 

सरकार का कहना था कि चावल तथा गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय बहुत कठिन था और विवश होकर इसे आजमाया गया।

दक्षिण-पश्चिम मानसून की हालत कमजोर होने से खरीफ कालीन धान की फसल को गंभीर नुकसान होने की आशंका। पैदा हो गई। घरेलू बाजार में चावल का भाव तेज होने लगा।

पूर्वी भारत में अल नीनो की वजह से वर्षा का अभाव होने के कारण धान का रकबा घट गया था। सरकार को महसूस होने लगा कि चावल के घरलू बाजार पर इसका गहरा मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है।

चूंकि नवम्बर दिसम्बर में पांच राज्यों में विधान सभा का चुनाव होने वाला था और खाद्य महंगाई का ग्राफ भी जुलाई में काफी ऊंचा हो गया था इसलिए सरकार ने ज्यादा जोखिम नहीं उठाना चाहा और सफेद गैर बासमती चावल के व्यापारिक निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत भी विशाल मात्रा में चावल का वितरण करण पड़ता है। 

लेकिन सरकारी स्तर पर जरूरतमंद देशों की खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए सफेद चावल का निर्यात जारी रखने का निर्णय लिया गया। इसके अलावा सेला चावल के निर्यात को खुला रखा गया।

बेशक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार के निर्णय को सही नहीं माना गया और अनेक देशों ने इसे वापस लेने का आग्रह भी किया लेकिन भारत सरकार की अपनी विवशता है और इसलिए उसे घरेलू मांग एवं जरूरत को प्राथमिकता देनी पड़ रही है।

अगले साल देश में आम चुनाव होना है और सरकारी प्रयासों के बावजूद नवम्बर में चावल का भाव ऊंचा एवं तेज रहा।

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