iGrain India - नई दिल्ली । नीति आयोग के एक सदस्य का कहना है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करते हुए किसानों की आमदनी दोगुनी की जा सकती है। राज्यों को देश के मौजूदा हालात के सापेक्ष अपनी कृषि नीतियों का निर्माण करना चाहिए।
दरअसल पंजाब एवं हरियाणा जैसे प्रांतों में मुख्य रूप से धान एवं गेहूं का उत्पादन होता है और केन्द्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर विशाल मात्रा में इसकी खरीद करती है इसलिए वहां किसानों को आकर्षक आमदनी प्राप्त हो जाती है।
उत्तर प्रदेश में धान एवं गेहूं के साथ-साथ दलहन, तिलहन एवं मोटे अनाजों का भी भरपूर उत्पादन होता है लेकिन इसकी सरकारी खरीद सीमित होती है इसलिए समग्र तौर पर किसानों की आमदनी में कम इजाफा होता है।
नीति आयोग के सदस्य का कहना था कि ऐसे अनेक राज्य हैं जहां एमएसपी के जरिए किसानों की आमदनी को दोगुना किया जा सकता है।
किसानों की आय में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी होना आवश्यक है और साथ ही साथ देश में अच्छी क्वालिटी के स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उत्पादों के उत्पादन संवर्धन पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
किसानों को राज्य सरकारों पर इसके लिए दबाव डालना चाहिए और राज्य सरकार भी अपने अधीनस्थ क्षेत्रों में नई-नई व्यावहारिक नीतियां लागू करनी चाहिए।
कृषि विशेषज्ञों एवं अर्थशस्त्रियों का कहना है कि बढ़ती जन संख्या एवं बदलती खाद्य शैली को देखते हुए भारत को खाद्यान्न के साथ-साथ अन्य जिंसों के उत्पादन पर भी विशेष जोर देने की जरूरत है।
देश में दलहनों एवं खाद्य तेलों की विशाल मात्रा के आयात होता है जिस पर भारी भरकम बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है। वर्ष 2047 तक भारत के एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्रति व्यक्ति आय में 6-7 गुना इजाफा करना आवश्यक है।
कृषि क्षेत्र इसमें अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है इसलिए उस पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए।
भारतीय अर्थव्यवस्था के त्वरित विकास-विस्तार को सुनिश्चित करने हेतु कृषि क्षेत्र में 4-5 प्रतिशत की वार्षिक विकास दर की आवश्यकता है।
आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु एवं तेलंगाना जैसे राज्यों में कृषि क्षेत्र की विकास दर 6-7 प्रतिशत देखी जा रही है जो निर्माण क्षेत्र की विकास दर से भी अच्छी है। देश के अन्य प्रांतों में भी इसी तरह की विकास दर जरुरी है।
कृषि क्षेत्र सरकार का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। कृषि निवेश में उसकी भागीदारी 16-17 प्रतिशत के करीब रहती है जबकि अधिकांश निवेश कृषक समुदाय द्वारा किया जाता है। इसके फलस्वरूप किसानों को उसके उत्पादों का आकर्षक एवं लाभप्रद मूल्य अवश्य प्राप्त होना चाहिए।