iGrain India - चंडीगढ़। लाल सागर क्षेत्र में माल वाहक जहाज़ों (कार्गो वेसल) पर हो रहे ड्रोन हमले को देखते हुए पंजाब-हरियाणा के चावल निर्यातकों की चिंता एवं बेचैनी बढ़ गयी है। इस क्षेत्र (जलमार्ग) से निर्यातकों के लाखों टन चावल का निर्यात शिपमेंट होता है। मध्य-पूर्व एशिया में जारी तनाव एवं इजराइल-हमास के बीच हो रहे युद्ध के कारण भारतीय निर्यातकों की कठिनाई पहली ही काफी बढ़ चुकी है जबकि अब लाल सागर क्षेत्र में हो रहे आक्रमण से समस्या और भी गंबीर हो जाने की आशंका है। निर्यातकों को भय है कि यदि जल्दी से जल्दी इस संकट को दूर नहीं किया गया तो उन्हें भारी घाटा हो सकता है क्योंकि निर्यात शिपमेंट अटक जायेगा।
देश से प्रति वर्ष औसतन 40-45 लाख टन बासमती चावल का निर्यात होता है जिसमें पंजाब-हरियाणा की भागीदारी करीब 70 प्रतिशत रहती है। लाल सागर जलमार्ग से भारतीय बासमती चावल का निर्यात बड़े पैमाने पर होता है। लगभग 40,000 करोड़ रुपए मूल्य के बासमती चावल के निर्यात कारोबार पर उत्पन्न इस खतरे को दूर करने के लिए निर्यातक अब भारत सरकार से इसमें हस्तक्षेप करने की मनाग कर रहे हैं क्योंकि ड्रोन हमले को देखते हुए शिपिंग कंपनियां लाल सागर क्षेत्र से होकर जाने से हिचकिचा रही हैं। निर्यातकों का कहना है की लाल सागर में सुरक्षा की चिंता बरकरार रहने पर यूरोप तथा अफ्रीका के देशों में भारतीय चावल योजना मुश्किल और महंगा हो जायेगा। अखिल भारतीय चावल निर्यात संघ (ऐरिया) के एक पूर्व अध्यक्ष ने इस घटना को चावल उद्योग के लिए एक अप्रत्याशित चुनौती बताते हुए कहा है कि यदि निर्यातकों को नए मार्ग का सहारा लेना पड़ा तो शिपमेंट खर्च काफी बढ़ जाएगा और उसमें समय भी ज्यादा लगेगा। वर्तमान समय में भारत से लगभग 80 प्रतिशत बासमती चावल का निर्यात मध्य पूर्वी एशिया के देशों में होता है और इसके 50 प्रतिशत का शिपमेंट लाल सागर क्षेत्र से किया जाता है। अब शिपिंग कंपनियां इस क्षेत्र में अपना जहाज भेजने से कतराने लगी हैं।