iGrain India - अहमदाबाद । एक अग्रणी व्यापारिक संस्था- कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने 2023-24 के वर्तमान मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर-सितम्बर) के दौरान कपास का घरेलू उत्पादन घटकर 294.10 लाख गांठ पर सिमट जाने का अनुमान लगाया है जो पिछले 15 वर्षों का न्यूनतम स्तर है।
एसोसिएशन का कहना है कि अगले सीजन में भी उत्पादन की स्थिति अच्छी रहने की संभावना नहीं है क्योंकि एक तो विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं, प्रतिकूल मौसम तथा कीड़ों-रोगों के प्रकोप से फसल को भारी नुकसान होने की आशंका रहती है और दूसरे, कपास का दाम भी घटकर काफी नीचे आ गया है।
इसके फलस्वरूप वर्ष 2024 के खरीफ सीजन के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर कपास के बिजाई क्षेत्र में 10 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2023 के खरीफ सीजन के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर कपास का कुल उत्पादन क्षेत्र करीब 123.80 लाख हेक्टेयर रहा जो वर्ष 2022 के बिजाई क्षेत्र में लगभग 3 प्रतिशत कम था।
एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है कि कपास के क्षेत्रफल में पहले ही काफी गिरावट आ चुकी है जिससे इसका उत्पादन भी काफी घट गया है। यदि किसानों को आकर्षक एवं लाभप्रद मूल्य हासिल नहीं हुआ तो अगले सीजन में कपास की खेती के प्रति उसका उत्साह घट जाएगा।
एसोसिएशन ने 2022-23 की तुलना में 2023-24 सीजन के दौरान कपास का घरेलू उत्पादन 8 प्रतिशत घटकर 294.10 लाख गांठ (170 किलो की प्रत्येक गांठ) रह जाने का अनुमान लगाया है जो पिछले 15 वर्षों में सबसे कम है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है कि भारतीय कपास उद्योग के लिए अभी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि रूई का उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए। कपास के वैश्विक बिजाई क्षेत्र का 38 प्रतिशत भाग भारत में है।
यहां औसतन 125 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती होती है जबकि विश्व स्तर पर इसका क्षेत्रफल 330 लाख हेक्टेयर के करीब रहता है।
भारत में कपास की औसत उपज दर महज 396 किलो (रूई के सापेक्ष) प्रति हेक्टेयर रहती है जो केवल 2.22 गांठ के समतुल्य है। दूसरी ओर इसकी वैश्विक औसत उपज दर 675 किलो प्रति हेक्टेयर रहती है। इस तरह वैश्विक स्तर के मुकाबले भारत में उपज दर 41 प्रतिशत नीचे रहती है।