iGrain India - मुम्बई । महाराष्ट्र एवं कर्नाटक जैसे शीर्ष उत्पादक राज्यों में अरहर (तुवर) की नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है और अगले महीने से अन्य प्रांतों में भी इसकी कटाई-तैयारी आरंभ हो जाएगी।
हालांकि कुल मिलाकर फसल कमजोर है लेकिन कटाई-तैयारी क पीक सीजन के दौरान मंडियों में इसकी आवक बढ़ सकती है। अगले महीने से म्यांमार में भी तुवर का नया माल आने लगेगा और फिर भारत में इसका आयात बढ़ सकता है।
सरकार ने तुवर, उड़द एवं मसूर के आयात को 31 मार्च 2025 तक सभी शुल्कों एवं नियंत्रणों से मुक्त कर दिया है ताकि देश में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति सुगम रह सके।
दक्षिणी राज्यों में रबी कालीन उड़द की नई फसल फरवरी या मार्च में तैयार होगी लेकिन उसकी हालत ज्यादा अच्छी नहीं बताई जा रही है।
अफ्रीकी देशों में तुवर का निर्यात योगय स्टॉक लगातार घटता जा रहा है जबकि मोजाम्बिक के बंदरगाहों पर अटके लगभग 2 लाख टन तुवर के शिपमेंट का मामला निकट भविष्य में सुलझना मुश्किल लगता है।
म्यांमार में इस बार करीब 4 लाख टन तुवर का उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसका अधिकांश भाग भारतीय बाजारों में आ सकता है।
इधर घरेलू प्रभाग में करीब 30 लाख टन तुवर के उत्पादन की संभावना व्यक्त की जा रही है जबकि मांग एवं खपत 44-45 लाख टन तक पहुंचने के आसार हैं। इस अंतर को पाटने के लिए विशाल मात्रा में तुवर के आयात की आवश्यकता पड़ेगी।
केन्द्र सरकार तुवर बाजार की स्थिति से पूरी तरह अवगत है लेकिन समस्या यह है कि चना के विपरीत उसके पास तुवर का अत्यन्त सीमित स्टॉक मौजूद है इसलिए वह कीमतों को नियंत्रित करने हेतु प्रभावी ढंग से हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
बफर स्टॉक बढ़ाने के लिए उसने सीधे किसानों से प्रचलित मंडी मूल्य पर तुवर खरीदने का प्लान बनाया है। अगले महीने से खरीद की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
तुवर का दाम हाल के दिनों में थोड़ा नरम हुआ है लेकिन फिर भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी ऊंचा है। नए माल की आपूर्ति के पीक सीजन में भी तुवर का दाम सरकारी समर्थन मूल्य (7000 रुपए प्रति क्विंटल) के आसपास या इससे नीचे आने की संभावना नहीं है।
खाद्य महंगाई को बढ़ाने में दलहनों का विशेष योगदान देखा जा रहा है इसलिए सरकार इसकी कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास छोड़ना नहीं चाहती है।