iGrain India - हैदराबाद । घरेलू उत्पादन में गिरावट, ऊंचे बाजार भाव तथा सरकारी नीतियों में होने वाले बदलाव के जोखिम को देखते हुए भारतीय चावल निर्यातकों के लिए 2024 का मौजूदा वर्ष काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
धान का न्यूतनम समर्थन मूल्य ऊंचा है इसलिए चावल के दाम में भारी गिरावट आना मुश्किल लगता है। ऊंचे मूल्य पर पश्चिम अफ्रीका के देशों में भारतीय चावल की मांग कमजोर पड़ सकती है।
भारत से केवल बासमती चावल एवं गैर बासमती सेला चावल का निर्यात हो रहा है जबकि कच्चे चावल एवं 100 प्रतिशत टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
लेकिन सरकारी खरीद में गिरावट आने से खुले बाजार में चावल का स्टॉक बढ़ने की संभावना है जिससे निर्यातकों को कुछ राहत मिल सकती है।
कम से कम चालू वर्ष के दौरान तो भारत से चावल का निर्यात शुल्क लागू है जबकि बासमती चावल के लिए 950 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (मेप) निर्धारित किया गया है। चालू वर्ष की पहली छमाही तक चावल का घरेलू बाजार भाव ऊंचे स्तर पर बरकरार रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
केन्द्र सरकार ने खरीफ कालीन चावल का उत्पादन 1105 लाख टन से घटकर 1063 लाख टन पर सिमट जाने का अनुमान लगाया है।
उधर अमरीकी कृषि विभाग ने भारत में चावल का कुल उत्पादन 2022-23 सीजन के 1355 लाख टन से घटकर 2023-24 के सीजन में 1280 लाख टन पर अटक जाने का अनुमान लगाया है।
उत्पादन में गिरावट आने की संभावना को देखते हुए सरकार ने चावल के निर्यात को नियंत्रित करने का प्रयास किया मगर इसका भाव फिर भी काफी ऊंचे स्तर पर मौजूद है।
सरकार ने मिलर्स एवं रिटेलर्स को चावल का भाव नीचे रखने का निर्देश दिया है। लेकिन ऐसा लगता है कि अगले कुछ महीनों तक इसमें ज्यादा नरमी नहीं आएगी।
वैसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी चावल का भाव काफी ऊंचे स्तर पर है लेकिन भारतीय निर्यातकों को भय है कि कहीं सेला चावल का भी निर्यात न रोक दिया जाए।