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दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं

प्रकाशित 09/01/2024, 02:36 am
दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं

iGrain India - नई दिल्ली । भारत दुनिया में दलहनों का सबसे अग्रणी उत्पादक एवं उपभोक्ता तथा एक प्रमुख आयातक देश बना हुआ है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान दलहनों के घरेलू उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन फिर भी विदेशों से इसका आयात बदस्तूर जारी है।

केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने दावा किया है कि दिसम्बर 2027 तक भारत दाल-दलहन के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा और 1 जनवरी 2028 से देश में एक किलो दलहन का भी आयात करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

सुनने में यह दावा कर्णप्रिय लगता है और हर कोई चाहता है कि यह दावा सच हो जाए ताकि विदेशों से दलहनों के आयात पर खर्च होने वाली विशाल बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत हो सके और  स्वदेशी किसानों को उसके उत्पाद का आकर्षक एवं लाभप्रद मूल्य हासिल हो सके। 

लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति के रास्ते में अनेक चुनौतियां, बाधाएं एवं कठिनाइयां मौजूद हैं जिसे जल्दी से जल्दी दूर किए जाने की सख्त आवश्यकता है।

पहली बात तो यह है कि विदेश में दलहनों की औसत उपज दर काफी नीचे है इसलिए विशाल क्षेत्रफल में खेती होने के बावजूद इसका उत्पादन अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंच पाता है।

दूसरी बात यह है कि किसानों को अक्सर औने-पौने दाम पर अपना दलहन बेचने के लिए विवश होना पड़ता है क्योंकि थोक मंडियों में इसका बह्व घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे आ जाता है।

यह अच्छी बात है कि सरकार ने अब इस दिशा में एक महत्वपूर्ण एक स्थायी प्रयास शुरू किया है और दलहन उत्पादकों के लिए एक नया पोर्टल लांच किया है।

इसके माध्यम से किसान सरकारी एजेंसियों- नैफेड एवं एनसीसीएफ को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपना दलहन बेच सकते हैं। जरूरत इस पोर्टल को हमेशा सक्रिय रखने तथा तुवर के साथ-साथ अन्य दलहनों को भी इसके दायरे में शामिल करने की है। इससे किसानों को दलहन उत्पादन संवर्धन का प्रोत्साहन मिलेगा।

दलहन फसलें मौसम के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती है। अक्सर शुष्कज एवं गर्म मौसम तथा सिंचाई सुविधाओं के अभाव  दलहन फसलों को भारी नुकसान होता है और किसानों की कठिनाई बढ़ जाती है।

इस समस्या का निदान होना जरुरी है। भारत अत्यन्त विशाल और मुख्यत: शाकाहारी देश है इसलिए यहां दाल-दलहन की विशाल मात्रा की खपत होती है।

आगे इसकी मांग तथा खपत और भी बढ़ने की जरूरत है। इसको ध्यान में रखकर ही देश में दलहन उत्पादन बढ़ाने का कार्यक्रम निर्धारित करने की आवश्यकता है।

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