iGrain India - नई दिल्ली । वैधानिक रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने की किसानों की मांग ने सरकार को सोच में डाल दिया है। अब सवाल उठता है कि क्या सभी फसलों के लिए समर्थन मूल्य की वैधानिक गारंटी संभव है और सरकार इसकी खरीद को उपयोगी मानती है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि कानूनी रूप से एमएसपी की गारंटी किसानों को बेहतर वापसी सुनिश्चित करेगी लेकिन सरकारी खजाने पर भार बहुत ज्यादा बढ़ा देगी। अगर किसानों को लाभप्रद मूल्य हासिल होता है तो स्वाभाविक रूप से उत्पादन में वृद्धि के प्रति उसका उत्साह एवं आकर्षण बढ़ जाएगा।
भारत फिलहाल खाद्यान्न और खासकर चावल तथा गेहूं उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर है लेकिन दलहन-तिलहन में काफी पिछड़ रहा है और इसलिए विदेशों से विशाल मात्रा में दलहन तथा खाद्य तेलों का आयात करने के लिए विवश हो रहा है।
इसके घरेलू उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोत्तरी करने की सख्त आवश्यकता है। इसके लिए सरकारी योजनाएं तो चल रही हैं मगर इसका अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ रहा है।
सरकार ने अगले पांच साल तक अरहर, उड़द एवं मसूर के साथ-साथ मक्का तथा कपास की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करने का प्रस्ताव रखा है मगर इसमें तिलहन फसलों को शामिल नहीं किया है जबकि ज्यादा जरूरत इसकी ही है।
खाद्य तेलों का आयात पिछले मार्केटिंग सीजन में उछलकर करीब 165 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया जिस पर अत्यन्त विशाल धनराशि खर्च हुई। देश में सोयाबीन एवं सरसों का भाव समर्थन मूल्य से नीचे चल रहा है जिससे किसान नाखुश हैं।
दलहन-तिलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी बेहतर उपाय है और इस पर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए पहले खाद्य तेलों एवं दलहनों पर आयात शुल्क को मुक्ति संगत बनाना होगा क्योंकि घरेलू बाजार भाव ऊंचा होने पर ही मिलर्स द्वारा दलहन-तिलहन की खरीद में दिलचस्पी बढ़ाई जा सकती है।